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"आओ अपना इतिहास लिखे "

"आओ अपना इतिहास लिखे "
भारतीय इतिहास ने मूलनिवासियों को सदैव दिग्भ्रमित किया है, तथ्यों को तोड मरोडकर प्रस्तुत किया है। इसलियें देष के इतिहास को निम्न मापदंड के अनुषार लिखकर इतिहास के भ्रम को दूर करें। 
प्रमुख माप:- 1 भूखण्ड 2 कालखण्ड 3 जीवन
प्रमुख कसौटी 1 जानो 2 छानो 3 तब मानो
1 बुद्धि 2 विवेक 3 और विज्ञान
इतिहास लिखने में रूचि रखने वाले साथियों, 
निम्न क्रमबद्ध तथ्यों में प्रमुख मापदण्ड: 1 भूखण्ड 2 कालखण्ड 3 मनुश्य जीवन या कब कहां और कौन की पूर्ति कर आप इतिहास लेखन में अपना योगदान दें । हमने जानबूझकर अधिकांष कब कहां और कौन का उल्लेख नही किया है ना ही सूक्ष्म विवरण दिया गया है कहने का मतलब यह कि यह एक सांचा है इसमें जितना अधिक जितना अच्छा मटेरियल डालकर बनाओगे उतना ही अच्छा परिणाम प्राप्त होगा एक अच्छा साहित्य आपके माध्यम से समाज को समर्पित होगा ।
0. धरती का निर्माण और जल और वायु की उपस्थिति पैंजिया का वर्णन
1. जीव उत्पत्ति:- काल और विवेकषील इंसान का विकासक्रम 
2. धरती का विभाजन:- टैथिस सागर गोंडवाना लैण्ड एवं अंगारा लैण्ड
3. गोंडवाना लैण्ड और नर्मदा नदी:- 25 करोड वर्श का अस्तित्व गोंडवाना का इंसान गोंड यानि द्रविण समूह या मूलनिवासी समुदाय जो प्रमुखतया गोडियन प्रजाति ,भीलियन प्रजाति ,कोलारियन प्रजाति में विभाजित दिखता है । यही प्रजातियां कालांतर में दैत्य, दानव, असुर, राक्षस और वर्तमान में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछडा वर्ग एव धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में हमारे देष में विद्यमान हैं ।
4. गोडवाना लैण्ड और हिमालय की गंगा नदी:- 6 करोड वर्श की उत्पत्ति 
5. प्रथम विकसित सभ्यता संस्क्रति:- गोंडवाना का इंसान गोंड यानि द्रविण समूह या मूलनिवासी समुदाय नर्मदा घाटी ,सिन्धु घाटी ,मोहन जोदाडो की विकसित सभ्यता 10 से 12 हजार वर्श पूर्व 
6.सभ्यता संस्क्रति स्थापना के लिये संधर्श :- षक, हूण, आर्य 3500 वर्श पूर्व
7. संधर्श के आरंभिक परिणाम :- देवासुर संग्राम, सिन्धु घाटी, मोहन जोदाडो सभ्यता का पराजय विजयी आर्यों का विजित मूलनिवासियों पर षासन करने के लिये षिक्षा सत्ता संगठन को कमजोर कर मानसिक मुलामी के लिये भाग्य ,भगवान की कल्पना तत्पष्चात मनुस्म्रति का कठोर कानून । द्रविण मूलनिवासी का समुदाय से जाति उपजाति पष्चात वर्ण अंतत अछूत सछूत आदिवासी आदि में विभाजित हुआ ।
8. संधर्श के परिणाम के बाद प्रतिक्रिया :- समय समय पर स्वाभिमानी मूलनिवासियों द्वारा आर्य सत्ता के विरोध में युद्ध किया 
9. प्रतिक्रिया स्वरूप उपजा संघर्श :- आर्य सत्ता के विरोध में युद्ध किया दास, सुदास ,हिरणाक्ष्य ,षंबर से लेकर महिशासुर तक ।
10. आरंभिक संघर्श काल :- बलि ,दास सुदास, हिरणाक्ष्य ,षंबर से लेकर महिशासुर षंकर रावन तक अनेक मूलनिवासी प्रमुखों ने अपनी स्थानीय सत्तायें कायम कर राज्य स्थापित करते गये । अपने अपने स्तर पर मूल सभ्यता संस्क्रति के पुनरूत्थान में लगे रहे । स्थानीय स्तर पर सफल असफल होते रहे । 
11. आरंभिक संघर्श काल के परिणाम :- मूलनिवासी प्रमुखों क्रश्ण से लेकर नंद ,अषोक, ब्रहदरथ ने अपनी स्थानीय सत्तायें कायम कर मूल सभ्यता संस्क्रति के पुनरूत्थान में लगे रहे । 
9 मध्यकाल का संघर्श :- अनेक मूलनिवासी प्रमुखों ने अपनी स्थानीय सत्तायें कायम कर राज्य स्थापित किये । 
12. मध्यकाल का संघर्श और उसके परिणाम :- अपने अपने स्तर पर मूल सभ्यता संस्क्रति का पुनरूत्थान हुआ । आर्य प्रभाव कमजोर हुआ परन्तु समय समय पर रक्तमिश्रित गददारों के कारण कुछ मूलनिवासी प्रमुख पराजित भी हुए ।
13. आधुनिक काल का संघर्श :- यह संघर्श आर्य सत्ता के विरोध के साथ साथ नव आक्रमणकारी यूनानी, मंगोल और मुगल पठानो के विरूद्ध हुआ। इस संघर्श के चलते पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजो के विरूद्ध भी मूलनिवासी योद्धाओं, प्रमुखों ने संघर्श किया ।
14. आधुनिक काल का संघर्श और उसके परिणाम :- आधुनिक काल के मिश्रित संघर्श में मूलनिवासीयों का नुकसान तो हुआ लेकिन तीनो विदेषी अपनी सत्ता सभ्यता संस्क्रति धर्म कायम करने के उददेष्य से मूलनिवासियों को कुछ रियायत दिया इससे मूलनिवासियों को सम्हलने का मौका भी मिला । रियायत से कुछ फायदा हुआ अंग्रेजी सत्ता चली गई लेकिन उनका प्रभाव भाशा धर्म संस्क्रति अभी भी मूलनिवासी एकता के लिये बाधक ही है । इसी तरह मुगल आक्रमणकारी अपार संपत्ति लेकर चले गये लेकिन अपनी भाशा धर्म संस्क्रति से मूलनिवासियों को कटटरता का पाठ पढाकर मूलनिवासी एकता की राह मे अपनी षर्तों का रोडा अटकाते रहते हैं । इसी का फायदा उठाते हुए प्रथम आ्रमणकारी आर्य जो अभी तक इस देष से वापस नहीं गया । अपनी शडयंत्रकारी कारनामों को पुनर्जीवित करने में सफल होता जा रहा है। 
15. वर्तमान संघर्श और उसके परिणाम :- 1947 के बाद से नये संघर्श मे मूलनिवासियो को पुन सम्हलने का मौका और अवसर मिला मूलनिवासी योद्धाओं प्रमुखों ने अपना बहुमूल्य योबदान दिया और दे रहे हैं संघर्श लगातार जारी है। क्या हम मूलनिवासीजन विदेषियों की सत्ता या विदेषी सभ्यता संस्क्रति धर्म की गुलामी से मुक्त हो पा रहे हैं नही हम लगातार वही गल्तियां दुहरा रहे हैं । चारो ओर मूलनिवासी आंदोलन चल रहे है लेकिन एक दूसरे से जुडकर सहयोगी नही वरन एक दूसरे के प्रतियोगी बनकर कार्य कर रहे हैं । परिणामस्वरूप कई आंदोलन विफल हो रहे हैं । मूलनिवासी योद्धाओं प्रमुखों का बलिदान कई तरह से लगातार जारी है आखिर कब तक एैसा चलेगा । मूलनिवासी संघर्श की इकाईयां दूसरे से जुडकर सहयोगी बनकर ही सफल हो पायेंगी । आईये मूलनिवासी मात्र एवं पित्र षक्तियों वर्तमान विदेषी सभ्यता संस्क्रति धर्म की गुलामी से मुक्त हो विदेषियो को पराजित कर इस संघर्श की षीघ्र इति कर अपनी उर्जा राश्ट के स्रजन में लगायें ।
प्रस्तुति:- गुलजार सिंह मरकाम

Comments

  1. Gondi dharm sanskriti vishwa sanskriti ki janni hai yadi aisa h to kisi bhi vacancy me gondi dharm ka option kyu nhi aata h ....Ha hum gondi dharm he aur garv he apna gond hone per lekin sirji ye hindu dharm jabaran ka kyu kisi from me kyu bharna padta h pl jara hume apna gondi dharm ko bharna chahte he to kya aisa niyam aa sakta kyu ni h....jai sewa jai johar jai gondwana 750

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