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"राश्टीय स्वयं सेवक संघ और नरेंद्र मोदी"

"डा0 अम्बेडकर जयन्ति के उपलक्ष्य में मूलनिवासी राश्टवादी समाज को सादर समर्पित". 
                                                  साथियों, राश्टीय स्वयं सेवक संघ का दावा है कि वह देष का सबसे बडा देष भक्त संगठन है । परन्तु असल में वह अपनी ब्राहमनी विचारधारा को इस देष में स्थापित करना चाहता है जिसका आदर्ष मनुस्मृति का संविधान है । अब आरएसएस के प्रचारक नरेंद्र मोदी के हाथों देष की सत्ता है । संघ को अपने गुरू गोलवलकर के सपनों को साकार करना है । अपने सभी एजेण्डा को षनैः षनैः लागू करना है जिन एजेण्डों पर ये 1925 लगातार कार्यषील हैं । संघ का एक प्रतिबद्ध प्रचारक देष की सर्वोच्च सत्ता पर है इसलिये भी इस बात की आवष्यकता और बढ गई है कि हम संघ के इतिहास संघ की विचारधारा और संगठन को समझें । 
एक ओर हमारे देष में आज भी सामाजिक गैर बराबरी और पिछडापन बडे पैमाने पर व्याप्त है आर्थिक असमानता चारों तरफ फैली है कमजोर वर्गों के मानवधिकार को आये दिन कुचलने का काम हो रहा है इसलिये आष्यकता इन क्षेत्रों में काम करने की है ना कि इनके नेताओं द्वारा की जा रही अनर्गल बयानबाजी जो संध के एजेण्डा को हवा देने का ही काम करता हो । वास्तविकता यह है कि केंद्र मे सत्ता आने के बाद संघ अपनी विचारधारा इस देष में थोपना चाहता है । 1. संघ की विचारधारा के अनुषार एकात्मक राश्ट: एकात्मक राश्ट यानि राज्यों को समाप्त कर सत्ता की बागडोर एक हाथ में अर्थात केंद्रीय सत्ता या तानाषाही सत्ता । सत्ता के विकेन्द्रीकरण के विरूद्ध संविधान के संघीय ढांचे को समाप्त कर लोकतंत्र को समाप्त करना । ज्ञात हो कि संघ का झुकाव हिटलर मुसोलिनी आदि फासिस्ट ताकतों के प्रति स्पश्ट झलकता है । गोलवलकर ने 1961 में राश्टीय एकता परिशद के प्रथम अधिवेषन को अपने भेजे गये संदेष में भारत में संघ राज्यों को समाप्त करने का आव्हान किया था । गोलवलकर महाराश्ट राज्य के निर्माण के घोर विरोधी थे महाराश्ट राज्य निर्माण के खिलाफ अनेक सम्मेलनों में जमकर भाशणबाजी की थी । 
2.संघ की मान्यता है कि भारत पूरी तरह से आर्यों की धरती है वह द्रविण संस्कृति और मूलनिवासी द्रविणों के अस्तित्व को पूरी तरह नकारता है । उनकी मान्यता है कि गैर हिन्दु इस देष में तो रह सकते हैं परन्तु दोयम दर्जे के नागरिक की हैसियत से ।
3. मनुस्मृति के प्रषंशक: संघियों के गुरू गोलवलकर और सावरकर मनुस्मृति के घोर प्रषंशक रहे हैं । उनकी पुस्तक श्बंच आफ थाटश् में एक घटना का उल्लेख का आधार मनुस्मृति को बनाया है । जबकि संविधान निर्माता डा0 अम्बेडकर ने मानवता एवं स्त्रिी विरोधी होने के कारण उसी मनुस्मृति की होली जलाई थी । 
3. कटटर हिन्दु: भारत के मूलनिवासी द्रविण समाज को इतिहास की गलत जानकारी देकर पाठयक्रम के सहारे उन्ही के बीच से कटटर हिन्दु तैयार करना । कटटर हिन्दु बनने के पहले मूलनिवासी यह तो विचार करे किए वह हिन्दु है भी कि नहीं घ् क्योकि हिन्दु षब्द का उल्लेख कथित किसी भी धर्म गृंथ रामायणए महाभारतए वेदए पुराणों में नहीं है । यह कब कैसे आया क्यों आया सर्वज्ञात है । कारण कि आज जिन्हे हिन्दु कहा जाता हैं वे वास्तव में सनातनी हैं सनातन धर्म में पूजा पाठ संस्कार आदि स्वयं समाज या परिवार के मुखिया या समाज के द्वारा नियुक्त बैगा भुमका पडिहार द्वारा संम्पन्न कराये जाते रहे हैं । पर सनातनी समाज हिन्दु बनकर हिन्दु बनाम बामहन धर्म अर्थात मनुस्मृति के निर्देषानुषार केवल विषेशाधिकार प्राप्त बामहन के द्वारा ही सम्पन्न कराते हैं । मूलनिवासियों के सनातन धर्म की गोद में ब्राहमन धर्म हिन्दु धर्म का मुखौटा लेकर बैठा है इसे समझने की आवष्यकता है । 
4. संघ और वयस्क मताधिकार: संघ के नेता सदैव वयस्क मताधिकार तथा प्रगतिषील विचारों के विरोधी रहे हैं । इन्होने डा0 अम्बेडकर के विरूद्ध सदैव जहरीला प्रचार किया । 
5.साम दाम दण्ड भेद: यह संध का प्रमुख हथियार है जिसे राजा बलि कालए राजा रावण कालए राजा हिरणाकष्यप कालए बौद्ध कालए मुगल कालए अंग्रेज काल से लेकर आज तक उपयोग किया जा रहा है । इस हथियार की सफलता का सूत्र है: बुद्धि सम्मत समझौतो के जरिये आगे बढना चाहिये चाहे इसके लिये आंषिक क्षति भी क्यों ना सहना पडे । राजनारायण के आन्दोलन में जनता पार्टी के साथ संघ कार्यकर्ताओ ं का हाथ मिलाना मायावती के साथ समझौता करानाए तत्कालीन केंद्र सरकार का गठन कराना बेमेल विचारधारा के संगठनों से हाथ मिलानाए हाल ही में जम्मू काष्मीर में सत्ता का समझौता आदि इसी का हिस्सा हैं । हमें इन सब बातों को समझकर अपना संघर्श की योजना तैयार करना है । ......षेशअगले अंक में

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