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."देशज त्यौहारों की वर्तमान स्थिति"

0."देशज त्यौहारों की वर्तमान स्थिति"
यह तो तय है कि होलिका को दुश्मनों ने चोरी से रात में मारकर जलाया होगा जिसकी यादो को ताजा बनाये रखने के लिए उन्हें किसी ना किसी देशज खुशी के त्यौहार के बीच रन्ग में भन्ग करना था। वे धीरे धीरे सफल हुए। सत्ता के हमारी मान्यताओं पर पडे प्रतिकूल प्रभाव से हम अपने त्यौहार को भूलते गये। इन्होंने हमारे हर त्यौहार के साथ अपना कोई ना कोई त्यौहार जोडकर हमारी सन्सक्रति को विस्मृत करने का प्रयास किया है, इसे समझना होगा। हमारे लोगों के द्वारा इन विषयों पर किया जा रहा शोध प्रयास सराहनीय है। हमें बहुजन आन्दोलन के अग्रणी मा० काशीराम के १५/८५ के फार्मूला से आर्य संस्कृति /अनार्य सन्सक्रति की मान्यताओं, परम्पराओं तीज त्यौहारों को छान्ट कर अलग करना होगा अन्यथा जाने अनजाने में हम अपनी खुशी के दिन को मातम के तथा अपने मातम के समय में खुशी मनाते दिखेन्गे । (गुलजार सिंह मरकाम)

1."सान्सक्रतिक सन्घर्श में शोसल मीडिया का योगदान"
बड़ी खुशी की बात है कि होली के सम्बन्ध में सोशल मीडिया में देश का पढा लिखा मूलनिवासी वर्ग देशज विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता दिखाई दे रहा है। जो अच्छा सन्केत है। बहुत से ग्रुपों में अनुसूचित जाति जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग के साथियों ने एक स्वर में आवाज लगाकर भविष्य में एकता का सन्केत दे रहे हैं। पिछली कुछ घटनाओं से समाज ने जरुर सबक सीखा है। किसी देश का भौतिक पराजय अस्थायी होता है किन्तु सान्सक्रतिक पराजय के बाद देशजो का पुनरुत्थान असम्भव हो जाता है। आज का दौर सान्सक्रतिक सन्घर्श का है इस सन्घर्श को मिलकर करना होगा। भले ही हमारी राजनीतिक सम्बद्धताए इतर हो जाति और वर्ग अलग हो पर हमारी सांस्कृतिक पहचान एक है,हम इस देश के मूलनिवासी ,देशज हैं हमें अपनी सन्सक्रति बचाना है।चाणक्य अपनी सन्तानों को इसी सन्दर्भ में सीख दे चुके हैं कि"पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं है जब तक उसकी सन्सक्रति पराजित नहीं हो जाती" हमारा देश मनुवादीयो से भौतिक रूप से पराजित हो चुका है,देश की समस्त व्यवस्था पर उसका आधिपत्य हो चुका है जिसे आसानी से हटाया नहीं जा सकता उसे केवल विचारधारा के सान्सक्रतिक एकता से ही हटाना सम्भव है। शोसल मीडिया में आप सभी का इस तरह से सम्वाद करना सान्सक्रतिक एकता का परिचायक है।हम जरूर सफल होन्गे।(गुलजार सिंह मरकाम)
3.''रामगढ के गोड राजा चांदव, काटव और रानी अवन्तिबाई ।''
मुगलकाल में गढा मंडला राज्य की समाप्ति तथा अंग्रेजी राज्य में राजा नर्मदाशाह के बगावत तक गोंडवाना राज्य पुनः छोटे छोटे रियासतों में स्वतंत्र हो चुका था इसी समयकाल में गढा मण्डला के अधीन रामगढ रियासत जो वर्तमान में डिन्डौरी जिले के अमरपुर ब्लाक में हैं उसमें गोंड राजा चांदव और राजा काटव का राज् था । इन दोनो भाईयों के संबंध में लोक कथा प्रचलित है कि इन्होंने अपने शरीर में एैसी औषधि का सर्जरी करा लिया था जिसमें उन्हें किसी धारदार तलवार या बंदूक की गोली का असर नहीं होता था । ज्ञात हो कि जिस रानी अवन्ति बाई को रामगढ की रानी बताया जा रहा है उसके पति जुझार सिंह गोड राजा चांदव और काटव के मंत्री रहे हैं । जिन्होने वर्तमान अमरपुर के पास नदी के किनारे स्थित रामगढ नामक आवासीय शिकार गाह में जुझारसिंह द्वारा दोनों भाईयों को शराब में बेहोशी की औषधि मिलाकर देने और बेहोशी के बाद हथियारों से राजाओं पर वार करने पर उनके शरीर में नहीं लगने का रहस्य राजाओं द्वारा बताये जाने के बाद जुझार सिंह नें उन्हें रामगढ के टीले से बोरे में बांधकर नदी में लुडका दिया जिस स्थान को आज भी देखा जा सकता है ं जिस जगह से लुडकाया गया था उतने स्थान पर आज भी घांस नहीं उगता । किवदंती के अनुशार इसी परिक्षेत्र में आज वह औषधि मौजूद है जिसके प्रत्यारोपण से हथियार गोली बंदूक का असर नहीं होता । लेखक इस दिशा में जानकारी हेतु लगातार प्रयासरत है कि वह कौन सी औषधि है जिसका उपयोग राजा चांदव और काटव ने किया था । ताकि यह गोंडवाना के पुनरूत्थान में सहायक हो सके । इससे यह स्पष्ट होता है कि रानी अवन्ति बाई रामगढ रियासत में राजा चांदव और काटव के बाद अंग्रेजी शासनक काल में जागीरदार के रूप में रहीं 1857 में उनकी उम्र लगभग 70 साल की थी इससे पाठक क्या अंदाजा लगाते हैं प्रश्नीय है । (गुलजार सिंह मरकाम )

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