Skip to main content

"मूलनिवासियों में स्ंविधान की बढती समझ का असर"

भारत रत्न डा भीमराव अम्बेडकर जयन्ति के उपलक्ष्य में सभी मित्रों को बधाई ।
"मूलनिवासियों में स्ंविधान की बढती समझ का असर"
1950 के बाद से मूलनिवासियों के लिये जब से हक और अधिकारों को संविधान में लिखित रूप में लाया गया तब से मूलनिवासी विरोधी, संविधान विरोधी भी बन चुका है । यही कारण है कि एक अच्छे संविधान को देश में पूर्ण रूप से लागू करने के बजाय जनहित का वास्ता देकर अनेक संशोधन कर डाले जिसमें अधिकतर मूलनिवासियों के महत्वपूर्ण अधिकारों पर ही कुठाराधात किया गया है । सत्ताधारियों की कुदृश्टि लगातार संविधान को पूरी तरह बदलने पर है ।
देश में जिन संगठनो समूहो व्यक्तियों ने संविधान प्रदत्त अधिकारों के पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद कारने का प्रयास किया उन्हे किसी ना किसी तरह देश में आतंकवादी. अलगाववादी. नक्सलवादी और अब राश्टद्रोही के रूप में भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है । 1. सबसे पहले आतंकवाद के नाम पर देश में हिन्दु बनाम मुस्लिम मानसिकता पैदा करने का प्रयास किया गया जो आज भी जारी है । 2. अलगाववाद के नाम पर सिख और बोडो इलाके के लोगों को बदनाम करने का प्रयास किया गया । 3. नक्सलवाद के नाम पर आदिवासियों को देश और दुनिया में मानवता का दुश्मन के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है । 4. अब इनका नया दांव अनुसूचित जाति वर्ग को देश द्रोही के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास जारी है । यानि संविधान सम्मत अपने अधिकारों की आवाज उठाने वाला हर व्यक्ति संगठन और समुदाय इनकी नजरों में आतंकवादी अलगाववादी नक्सलवादी और देशद्रोही है । तभी तो बैंक का छोटा कर्ज लेने वाला आर्थिक अपराध में जेल जाता है । करोडों का कर्ज लेकर बैंको को दिवालिया कर देने वाला खुलेआम घूमता है । हिन्दु धार्मिक आतंक से हजारों लोगों को सरेआम काटता है वह अपराध मुक्त हो जाता है और भोजन के लिये मांस बीफ खाता है वह अपराधी हो जाता है । सविधान का सम्मान करने वाला देश द्रोही हो जाता है और कथित साधु संत संविधान से उपर अपने पोथियों की बकालत करता है वह दोष मुक्त कहलाता है । देश में कोई भारत माता की जय नहीं कहे तो देश का गददार होता है और आर एस एस जैसे कथित राश्टवादी संगठन के मुख्यालय में राश्टीय पर्वों में तिरंगा नहीं फहराया जाता तो वे असली रा्श्ट भक्त हैं । हमें यह तय मान लेना है कि इस की मनुवादी व्यवस्था के पोषक कांग्रेस भाजपा दोनों है आज हिन्दू राश्ट के नाम पर भाजपा मुखर हो रही है तो कांग्रेस का मौन समर्थन उसके साथ है । इन्हें किसी भी स्थिति में सहयोग करना अपने पैरों में कुल्हाडी मारने जैसी बात होगी । जय सेवा । -गुलजार सिंह मरकाम

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि