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"सामाजिक और राजनैतिक आसक्ति"

राजनीति और समाजनीति के फर्क को जब तक लोग नहीं समझेगें तब तक सामाजिक टकराव स्वाभाविक है । इसी घालमेल ने समाज में आपस की दूरियां पैदा कर दी है ।
समाज समुदाय के संगठन और राजनीतिक संगठन की अलग अलग विशेशताऐं होती हैं । सामाजिक संगठन समाज, समुदाय के नीति नियमों और उसके संविधान से शाषित होते है । जबकि राजनीतिक पार्टियां भारतीय संविधान के निर्देशों धाराओं के अंतर्गगत चलती है । व्यक्ति की आसक्ति समाज के लिये हो आवश्यक है ,पर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से व्यक्ति की आसक्ति जब पार्टी पर बढ जाये तो वह समाज का ठेकेदार बनकर सबको अपनी आसक्ति वाले दल की ओर ले जाना चाहता है । क्योकि वह उसके व्यक्तिगत चयन का हिस्सा होता है । एैसी स्थिति में समाज में आपसी टकराहट संभव है । तब उस आसक्ति से बीमार व्यक्ति को कुछ नहीं सूझता क्योंकि उसकी व्यक्तिगत आसक्ति भरे भाव में वह दल और उस दल के प्रति गहरी आसक्ति होती है वह व्यक्तिगत भाव से चयनित दल की असफलता के भय से तिलमिला जाता है । वह सामान्यभावी ना होकर सम्प्रदायिक हो जाता है । भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था में इसी आसक्ति ने साम्प्रदायिक दंगे करवाये हैं । रूग्ण मानसिक रोगियों से प्रजातंत्र का भी गला घोटने का प्रयास होता है । देश को रूग्ण मानसिक रोगियों से छुटकारा पाना होगा ! समाजों को समुदायों को राजनीतिक दलों को भी एैसे मानसिक रोगियों से छुटकारा पाने का प्रयास करना चाहिये ।- gsm

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

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