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"अब गोत्रों का होगा मानकीकरण !"

"अब गोत्रों का होगा मानकीकरण !"
देश के विभिन्न हिस्सों में गोंड समुदाय एवं उनकी उपजातियां स्थानीय भाषा के प्रभाव के कारण 750 गोंत्र नामों से भी अलग नाम से लिखते हैं । यथा बिहार झाारखण्ड( बेसरा) छ0ग0( हुपेंडी) तेलंगाना (अर्का) महाराष्ट (गेडाम, आडे) उडीसा (नायक) म0प्र0 (गोठरिया ,मार्को) आदि ! उ0प्र0 में केवल (गोंड) गोत्र नहीं ,अन्य राज्यें में केरला में भी गोंड समुदाय की जानकारी प्राप्त हो रही है इसका भी अध्ययन किया जाना है ।

जनजातियों सहित मूलविासियों के सभी गोत्र टोटेिमस्टिक होते है । 
 सगा जनों और फेसबुक मित्रों से आग्रह है कि अपने नाम के साथ अपना सर्नेम को अनिवार्य रूप से जोडें गौरव की बात होगी । सभी अपने टोटम या गोत्र चिन्ह से भी सबको अवगत कराये ंतो देष के समस्त मूलनिवासी समूह जो अपने गोत्र की जानकारी के साथ टोटम से अवगत करायेंगे तो पुरातन समय की सामाजिक व्यवस्था को समझने में आसानी होगी कारण कि जाति और वर्गों में बंटा यह समाज भाषायी अंतर के कारण एक ही टोटम को अलग अलग नाम से धारित किया हुआ है । मिंज उरांव, में मछली टोटम और मीना राजस्थान में मछली टोटम गोंडी में मीन यानि मछली आदि । कुल्हाडिया हल्बा, कुल्हाडा मीना , मर्सकोला गोंड ,इसी तरह पारधी कछुवा , मुण्डा कछुआ ,उरांव कछुआ, बहेलिया, गोंड कश्यप इसी तरह देश की अनेक जाति जनजातियों में नाग टोटम को भी सर्नेम के रूप में लिखा जाता है । अपने गोत्र को समझने के लिये मूल भाषा के नाम को हिन्दी में उल्लेखित करने बताने में बहुत सी बाते स्पष्ट हो जायेंगी ।

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