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"याद करो अंग्रेजों और अंग्रेजी शासन को "



याद करो अंग्रेजों और अंग्रेजी शासन को जब अल्प संख्या में गोरे थे भारत में । "तब भी यही धरती यही नदियां यही समाज था । यही चांद यही सूरज और चांद का प्रकाश था ।" 
तब भी यही शासन तंत्र था चपरासी से लेकर कलेक्टर तक 
अर्दली सिपाही से लेकर पुलिस प्रमुख तक । 
सेना में जवान से लेकर सेना प्रमुख तक । 
पंच से लेकर संसद तक ।
तब देश के नागरिक इन पदों पर थे तो अन्याय अत्याचार कौन करता था ।
क्या देश के शासकीय पदों पर बैठे देषी अधिकारी कर्मचारियों को अपनों पर अन्याय अत्याचार करने में मजा आता था ।
 1947 के पहले और अब में क्या फर्क है ।
यदि फर्क नहीं है तो इसे कैसे दूर किया जा सकता है ।
मुटठी भर अंग्रेज सत्ता के बल पर संसाधनो का मालिक बनकर चंद देशी नागरिकों को पद प्रतिष्ठा और सुविधा देकर अपना चमचा बनाकर रखता था । जिसके कारण अपना अपनों पर अत्याचार करता था ।
-आज भी स्थिति ज्यों की त्यों है ।
"अंग्रेजी शासन के विरूद्ध कुछ सेना पुलिस के लोग कुछ अधिकारी कर्मचारी कुछ समाज सेवियों कुछ मजदूर किसानो छात्रों ने अन्याय अत्याचार कि विरूद्ध शंखनाद कर दिया था जो बाद में राष्टीय स्वतंत्रता आन्दोलन के रूप में विकसित हुआ । क्या इसकी पुनरावृत्ति संभव है ।यदि हां तो जिस पद पर बैठे हो वहीं से बगावत का वैचारिक तानाबाना बुनो ! इन चंद अंगेजो की तरह चंद मनुवादी पूंजिवादी व्यवस्था के पोषकों के प्रति । कल वह व्यवहारिक रूप लेगा अभी कम शख्या ही सही ! अन्यथा पूंजीपतियों के माध्यम से आर्थिक शोषण का भविष्य का नजारा भयावह है । राजनीतिक ताकत आपके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताला लगाने वाली है । हिन्दुत्व मात्र धार्मिक राष्टवाद का प्रतीक होगा । सांस्कृतिक सामाजिक आधार छिन्न भिन्न कर दिया जायेगा जो इस देश की मूल पूंजी है ।"
"सांस्कृतिक पराजय के बाद एकता और संघठित होने के लिये कुछ भी नहीं बचता
मनुवादियों का सांस्कृतिक विजय अभियान जारी है जिसे सत्ता का समर्थन होगा"
इसलिये चाण्क्य ने कहा था
"पराजित राष्ट तब तक पराजित नहीं होता जब तक उसकी संस्कृति पराजित नहीं होती ।"
सत्ता का समर्थन जिसको है इज्जत उसकी बढ जाती है । चाहे चोर लुटेरा काफिर हो कीमत सबकी बढ जाती है ।।(by-gsmarkam)

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