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"दो धारी तलवार"


"दो धारी तलवार" गोन्डवाना भूमि के आदिवासी समुदाय को अपना सन्घर्ष दो धारी तलवार से करना होगा। इसके लिये बौद्धिक और शारीरिक दोनो बलो की आवश्यकता है !
(१) समुदाय की सान्स्क्रतिक , समाजिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता को स्थापित करने के लिये ।
(२) समुदाय के सवैधानिक अधिकारों, तथा जीवन की ग्यारन्टी जल, जन्गल, जमीन को बचाने के लिये।
देश में जितने विकसित समुदाय हैं, इन्होंने अपने समुदाय को पहली बिन्दु में सुद्रढ कर लिया है। इसलिये मजबूती से दूसरे लक्ष्य पर अपनी पूरी ताकत लगाकर उसे हासिल कर लेता है । आदिवासी समुदाय सोचता है , ऐसे लक्ष्य को हम क्यो हासिल नही कर पा रहे है । मेरा मानना है कि "कोई व्यक्ति, समुदाय या समाज आन्तरिक रूप से ताकतवर नहीं है वह बाहरी युद्ध नहीं जीत सकता " आन्तरिक ताकत से एकता , आत्मविश्वास , द्रढ निश्चय और स्वाभिमान पैदा होता है जिसके बल पर बहुत कुछ हाशिल किया जा सकता है ।

" हार या जीत" का सूत्र"
 मनुवाद v/sप्रकृतिवाद।, मनुस्म्रतिv/sभारतीय सन्विधान, देवv/sदानव,राक्षस।, ब्रहस्पतिv/s शुक्राचार्य, आर्य v/s द्रविड़, मूलनिवासी v/sविदेशी।, शोषक v/sशोषित, साम्यवादीv/sसाम्राज्यवादी, मार्कस्v/s हिटलर, इन विचारधारा को समझते हो तो नेत्रत्व करते हुए आन्दोलन करने के लिये आगे बढो अन्यथा केवल सहयोगी बनकर आन्दोलन का सही मानसिकता से साथ दो । आपका इतना सहयोग ही असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिये पर्याप्त होगा ।
-गुलज़ार सिंह मरकाम

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