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"दोहरी शिक्षा नीति और शासकीय सेवको की भर्ती में धांधली की जडें "


भारत के संविधान ने मानव मूल्यों के हर पहलू पर अपना ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया है । देश की परिस्थितियों सामाजिक में असमानता का ध्यान रखते हुए समाज के हर तबके के लिये सुनियोजित व्यवस्था देने का प्रयास किया गया है ताकि देश का कोई भी नागरिक भेदभाव का शिकार ना हो उन्नति के अवसर से वंचित ना हो जाये । समाज के समग्र उत्थान की कडी में शिक्षा और रोजगार का महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें स्वरोजगार से लेकर शासकीय सेवा तक के लिये संविधान में बेहतर व्यवस्था की गई है । परन्तु समय समय पर सत्तारूढ राजनैतिक दलों नें संविधान की की मूल भावनाओं के साथ खिलवाड करते हुए अपने लिये अनेक तरकीबे निकालते रहे हैं जो आज तक बदस्तूर जारी है । जिसका दुष्प्रभाव से वंचित समाज पर ही पड रहा है । शिक्षा के क्षेत्र में (1)-राज्य शिक्षा बोर्ड वहीं पर (2)-केंन्द्रीय शिक्षा बोर्ड तथा
(3)- अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड एक देश एक नागरिकता एक क्लास पर सभी का पाठयकृम सिलेबस अलग अलग आखिर किसलिये । शिक्षा पर दोहरा मापदण्ड क्यों । आप समझ सकते हैं आई ए एस आरईएस या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में कौन सफल होता है ।
जैसे तैसे शिक्षा प्राप्त कर शासकीय सेवा में अवसर का मौका बनता है तब इन सत्ताधीशों ने उसमें भृष्टाचार और कालाबाजारी करने का रास्ता निकाल लिया है वह रास्ता है प्रत्येक विभाग का भर्ती बोर्ड जैसे रेल्वे भर्ती बोर्ड ,बैंक भर्ती बोर्ड, सैनिक,डाक आदि जिसमें अधितर सत्ताधरियों के रिस्तेदार या चहेतें को मुख्य पदों पर रखा जाता है । इस विषय पर किसी का ध्यान नही गया कि जब संविधान में शासकीय सेवकों की भर्ती के लिये केंद्रीय सेवाओं के लिये(1)-संघ लोक सेवा आयोग और राज्य सेवाओं के लिये (2)-राज्य लोक सेवा आयोग की व्यवस्था है जो सभी विभागों के लिये कर्मचारी भर्ती के लिये नियत और सक्षम है तब हर विभाग के अपने अपने भर्ती प्रक्रिया और बोर्ड क्यों ? ये किसको प्राथमिकता देंगे ? यही कारण है कि देश के विभिन्न केन्द्र और राज्य सरकार के विभाग ना आरक्षण का कोटा पूरा करते हैं, ना ही समय पर कर्मचारियों की जानबूझकर भर्ती करते, हजारें पद रिक्त हैं इसकी देख रेख नहीं, यही कारण है कि कहीं शिक्षकों का अभाव कही पर कर्मचारियों की कमी का बहाना बनाते हुए शासकीय कार्य को जानबूझकर प्रभावित करते हैं । मेरा मानना है कि सभी विभाग भर्ती बोर्ड बंद कर दिया जाना चाहिये । आज आरक्षित वर्ग जिस रोस्टर के भरोशे पद की अभिलाषा करता था कि थोक से पद निकलेंगे तो हमारी केटेगरी के इतने पद होंगे ये सब विभागीय बोर्ड के शिकार होते जा रहे हैं । अब विभागीय भर्ती में दो या तीन पदों पर क्या रोस्टर सभी पद सामान्य । इस पर चिंतन कर लोगों को अवगत कराया जाना चाहिये कि संविधान विरूद्ध शासकीय सेवाओं में भर्ती प्रक्रिया में हो रही धांधली पर अंकुश लगाया जा सके । -gsmarkam

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