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"आदिवासी और भारत में विदेशी निवेश"


"आदिवासी और भारत में विदेशी निवेश"
भारत में तीन खरब(3000000000000) डालर  का निवेश विदेशी कंपनियां किस लालच से करेंगी । क्या भारत के लोगों की क्रय छमता बढ़ गई  है। या  कोई और मतलब है। चुकी कोई इन्वेस्टर लागत वहां लगाता है जहां उसे ज्यादा फायदा दिखे,और वहां लगाएगा जहां उसे लाभ का पक्का भरोसा  दिलाने की गारंटी देने वाला मिले। आओ पता लगाएं की आखिर विदेशी इन्वेस्टर भारत में इतनी बड़ी पूंजी लगाने के लिए क्यों तैयार हो रहे हैं, कौन सी ऐसी महत्वपूर्ण पूंजी है जिससे इन्वेस्टर्स को फायदा होने वाला है, आपको जानकर आश्चर्य होगा की भारत में सारी पूंजी धरती के अंदर जमा है और यह जमा पूंजी खनिज पदार्थ के रूप में लोहा कोयला सोना यूरेनियम तांबा आदि के रूप में प्रचुर मात्रा में विद्यमान है इन्वेस्टर को इसी बात से लुभाया गया है और गारंटी भी दी गई है कि, आप जहां कहेंगे वहां से आपको खनिज निकालने का लाइसेंस दे दिया जाएगा परंतु इन्वेस्टर्स ने कहा की यह भूमि यह खनिज तो जंगल क्षेत्रों में आदिवासियों के पास  है और जंगल क्षेत्रों में आदिवासियों का निवास है इन क्षेत्रों में पांचवी और छपी अनुसूची लागू है ऐसा कानून के अंतर्गत वहां की संपदा के प्रबंधन का उन्हें अधिकार है, वे कैसे उसे अपने हाथ से जाने देंगे उनके वहां रहने पर उस भूमि पर खनिज निकालना आसान नहीं होगा क्योंकि इनके क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची और पेशा कानून जैसे नियम प्रभावित करेंगे यदि वे नियमगिरि पहाड़ की भांति आंदोलन खड़ा कर दें तो हमें उद्योग लगाने में परेशानी होगी इतना ही नहीं समता जजमेंट भी उन्हें उस भूमि का मालिक समझती है ऊपर से वनाधिकार कानून भी उनको बेदखली से रोकने के लिए मजबूत दीवार है ऐसी स्थिति में बड़ी अड़चन है, इस पर गैरंटी देने वाला देने वाला कह रहा है की हम इन क्षेत्रों में ऐसे कानून और योजना लेकर जा रहे हैं इससे उन्हें बेदखल होना ही पड़ेगा, हम पर्यावरण और जनहित के नाम पर जैसे टाइगर प्रोजेक्ट के बड़े-बड़े कारीडोर जिससे उसके अंदर आने वाले सभी लोगों को आसानी से कुछ मुआवजा देकर बेदखल कर दिया जाएगा । इसलिए आप आए इनवेस्ट करें। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

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गोंडी धर्म क्या है

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