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"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया"

"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया"
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने शेड्यूल्ड एरिया को प्रजातंत्र की पाठशाला के रूप में चिन्हित किया था ताकि भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बन सके । देश के बहुत सारे हिस्सों में आजादी के बाद भी जमीदारी,पूंजीवादी अधिनायक वादी ताकतें लगातार देश की व्यवस्था को अंग्रेजों की भांति अपने इर्द-गिर्द रखना चाहती थी परंतु संविधान निर्माताओं ने "सुंदर,स्वस्थ्य,समृद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना के लिए  प्रयोगशाला के बतौर "शेड्यूल्ड एरिया" घोषित किया जिससे प्रेरणा लेकर ये फासीवादी, अतिवादी,पूंजीवादी मानसिकता के बिगड़ैल लोगों में कुछ सुधार हो सके। इन ‌चिन्हित क्षेत्रों जिसमें गरीबी और अभाव के बीच भी शांति और भाईचारा कायम था,और अब भी उसके अवशेष जीवित हैं,ये लुट जाते हैं पर किसी को लूटने का साहस नहीं कर पाते, सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा जिसे प्रजातंत्र का असली स्वरूप कहा जा सकता है, बतौर प्रयोगशाला में स्पष्ट दिखाई दे रहा था परंतु आधुनिक व्यवस्था के संचालकों ने प्रजातंत्र की इन चिन्हित प्रयोगशालाओं में दखल करते हुए शिक्षा और विकास के नाम पर यहां के वातावरण को बिगाड़ने का काम किया है। भारत को यदि शांति,  सद्भाव और समृद्धि चाहिए तो आदिवासी सुरक्षित क्षेत्रों को स्वशासन और पूर्ण स्वायत्तता देनी होगी आदिवासी के जीवन दर्शन और मूल्यों को महत्व  देना होगा। जल ,जंगल,जमीन को कॉरपोरेट सेक्टर के पूंजीवादी पंजों से बचाना होगा।
-गुलजार सिंह मरकाम (रासंगोंसक्रांआं)

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि