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"दबाव और प्रभाव"

"दबाव और प्रभाव"
मध्यप्रदेश में आदिवासी हुंकार यात्रा की जानकारी अब लोगों तक पहुंचने लगी है। जिन लोगों को पांचवी अनुसूची पेसा कानून वनाधिकार  से संबंधित अधिकारों की समझ है , विस्थापन और पलायन के दंश को समझते हैं, ऐसे लोग व संगठन स्वस्फूर्त चेतना के साथ आंदोलन को सफल बनाने में दिन रात लगे हुए है साथ ही जिन लोगों को जानकारी नहीं है उन्हें लगातार मीटिंग के माध्यम से बताने का प्रयास कर रहे है। प्रदेश में यह पहला मौका है जब पूरे प्रदेश के चारों ओर से लोग हैं, सुप्रीकोर्ट में लंबित वनाधिकार के निर्णय का पूर्वानुमान लगाते हुए जनविरोधी परिणाम के विरूद्ध अपनी ताकत का एहसास कराने को तैयार हैं। साथियों,जनता के अधिकारों के विरुद्ध यदि कोई सरकार हो या सुप्रीकोर्ट ही क्यों ना हो विपरीत निर्णय देने की मंशा रखेगी तो उसका भी विरोध करने का अधिकार जनता को है, आखिर सुप्रीकोर्ट के बाद कहां जाया जा सकता है ।जनता के हित को यदि कोई कानून या निर्णय प्रभावित करता है तो जनता उसे अपनी एकता और ताकत से बदलवा सकती है। कारण है कि "जनता की सुविधा के लिए कानून है ना कि कानून के लिए जनता है"
निवेदक- जल जंगल जमीन जीवन बचाओ साझा मंच मप्र
प्रस्तुति-गुलजार सिंह मरकाम (रासगोंसक्राआ)

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि