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वनाधिकार कानून और ऐतिहासिक‌ भूल

"वनाधिकार हाशिल कर लो,अन्यथा हमसे भी "ऐतिहासिक भूल" ना हो जाये।"
जल जंगल जमीन के अधिकार के लिए हमेशा संघर्ष करने वाले व्यक्ति और संगठनों से अपील है कि मप्र में वनाधिकार अधिनियम के तहत प्रस्तुत किये गये पूर्व के दावे जिन्हें साक्ष्य अभाव या दावा पत्र की विधिवत जानकारी के अभाव में लाखों दावे निरस्त किये गये हैं, ऐसे निरस्त दावों को पुनर्विचार के लिये पुन:  ग्राम सभा के माध्यम से समिति के पास प्रस्तुत किया जाना है,तथा कोई दस्तावेज की कमी है या भरने में त्रुटि है सुधार की व्यवस्था ",वनमित्र एप" के माध्यम से की जायेगी यह एप प्रत्येक गाँव में रोजगार सहायक के पास उपलब्ध होगी , जिसके माध्यम से वनाधिकार दावों का पंजीकरण होगा,इससे पूर्व यह भी ध्यान देना होगा कि जहां पर वनाधिकार समिति अच्छे से क्रियाशील हैं,इन समितियों को एप के माध्यम से आजाकवि प्रशासन में पंजीकृत कराना होगा।यदि जहां पर समितियों का कार्य शून्य है या इस संबंध में कोई जानकारी नहीं,या किसी समिति में सदस्यों की मृत्यु या स्तीफा के कारण क्रियाशील नहीं है, ऐसे ग्रामों में ग्राम सभा आयोजित करके समिति का विधिवत गठन कर वन मित्र एप से उसका पंजीयन करा लिया जाय तत्पश्चात हितग्राहियों से पुराने दावा प्रपत्र की जांच कर विकासखंड स्तरीय समिति को अग्रेषित करें। साथियों ध्यान रहे ,यह एप पुराने अस्वीकृत दावों पर ही काम करेगी परन्तु जब ग्राम सभा का आयोजन होना ही है तब हमें एक प्रस्ताव और जोड़कर उसे भी पारित कर लेना होगा वह है "परंपरागत सामुदायिक वनाधिकार" प्रपत्र "ग" का दावा, साथियों यदि हमारे जागरूक कार्यकर्ता और जानकार साथी इतनी सजगता और मुस्तैदी से काम कर लेते हैं तो ग्राम समुदाय को अपनी सीमा में आने वाली हर व्यवस्था, सम्पदा और संसाधन के प्रबंधन का अधिकारी होकर ग्राम को समृद्ध बनाने में अपनी महती भूमिका अदा कर सकता है,भविष्य में आने वाली पीढ़ियां आपको सदैव स्मरण करती रहेंगी। ध्यान रहे,भारतीय संसद ने ग्राम समुदाय को वनाधिकार से वंचित किये जाने को अपनी "ऐतिहासिट भूल" स्वीकारते हुए भूल का सुधार करते हुए वनाधिकार कानून बनाकर ग्राम समुदाय की तरक्की का रास्ता बना दिया।यदि अवसर के बावजूद हम इसे हासिल नहीं कर पाये तो यह हमारी ओर से की जाने वाली "ऐतिहासिक भूल" होगी । तब आने वाली पीढ़ियां हमें कोसने से नहीं चूकेंगी।
प्रस्तुति-गुलजार सिंह मरकाम(रासंगोँसक्रांआं)
साभार:-आदिवासी हुंकार यात्रा मप्र

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