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"सन्गठन और सन्विधान"



"चमचागिरी दर्शन,कोरी ताकत का भ्रम"
एक उंचे और मजबूत पेड के तने के इर्द गिर्द चिपक कर कमजोर लता बेली पेड की उंचाई तक चला जाता है और उसे भ्रम हो जाता है कि पेड की ताकत को सम्मान देने वाले मेरी उचाई का भी सम्मान कर रहे हैं । परन्तु उस लता बेली को इतना याद रखना चाहिये कि जिस दिन मजबूत तने से हटेगा तो उसकी ताकत और उंचाई कुछ भी नहीं होगी ।

"समाज और राजनीति "
"राजनीति, राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर समाज का अन्कुश नहीं होने से राजनेता बेलगाम होकर सन्विधान की नीति और नियमो को ताक मे रखकर व्यक्तिगत नीतियों और नियमों को मनमानी ढन्ग से समाज पर थोपने लगता है । इन सबके चलते स्वस्थ प्रजातन्त्र की कल्पना मात्र की जा सकती है।"

"सन्गठन और सन्विधान"
-किसी सन्गठन की रीढ उसका सन्विधान होता है। जो सन्गठन अपने सविधान के उद्देश्यो नियमो के अनुसार नहीं चलते एैसे सन्गठन कभी भी सफल नहीं होते ! ऐसे सन्गठन व्यक्तिवाद के शिकार हो जाते हैं।

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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