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"हम प्रकृतिवादी हैं, हमारी न्याय दृष्टि प्रकृतिवादी होना चाहिये ।"

"हम प्रकृतिवादी हैं, हमारी न्या दृष्टि प्रकृतिवादी होना चाहिये ।"
प्रायोजित प्रभाव बाहर से देखने में अच्छा लगता है पर उसे अंदर से भी झांको ।
आज का जमाना पारदर्शिता का है यदि इस तरह से चला नहीं गया तो लोग उंगली उठाने से नहीं रूकेंगे । मैंने पहले भी लिखा है "अंध भक्ति और अंध श्रद्धा" नुकसान दायक होती है । "बौद्धिक आस्था बौद्धिक तत्वों के साथ चलने वाला कोई भी प्रयोजन व्यर्थ नहीं जाता ।" चाटुकारी इतिहास ने गांधी को महानायक बना दिया सबका ध्यान उधर चला गया लम्बे समय तक किसी विचारधारा ने इसे भुनाया भी और कुछ लोग आज भी उसे भुना रहे हैं पर वक्त बदला गांधी आज देश में विलेन के रूप में स्थापित हो चुके क्यों । इसका कारण है लोगों नें छानबीन शुरू की उनका असली इतिहास जाना । वहीं अम्बेडकर को इतिहास ने अंग्रेजो का पिटठू के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया पर आज वही अम्बेडकर सबका चहेता क्यों । अब लोग खोज और शोध कर रहे हैं ,एक और उदाहरण है आदिवासियों की परंपराओं, रिवाजों को लोगों के साथ साथ हमारे अज्ञान भी पिछडापन का पर्याय मानते रहे आज बुद्धिजीवी इस पर शोधपरक तथ्य सामने ला रहे हैं तब स्थितियां बदल रही है । गोंडवाना आन्दोलन को बुद्धि विवेक से पिछले इतिहास की बारीकियों को समझ कर आगे बढाना है, दादा हीरासिंह मरकाम हमारे बडे हैं हमने उनका सदैव सम्मान किया है, लेकिन कुछ बाते जो हमें सदैव सोचने के लिये मजबूर करती है । उन्होने किस कारण से एैसे इन वाक्यों का प्रयोग किया यह भी शोध का विषय होना चाहिये । "धोकल सिंह मरकाम ने धोखा दिया, कंगला मांझी ने कंगाल किया ।" मण्डला से लेकर सारे गोंडवाना में धोकल सिंह को मानने वाला बहुत बडा तबका है वहीं कंगला माझी के नाम पर उनके सैनिक आज भी गोंडी धर्म और गोंडवाना नाम का पटटा लेकर अलख जगा रहे हैं । एैसे महापुरूषों के लिये इस तरह से संबोधन शोध का विषय हैं । इस मेसेज ने कितनों को आहत किया इसका अंदाजा लगा पाना संभव नहीं ! आज भी ये गोंडवाना समग्र क्रांति का हिस्सा नहीं बन सके हैं । अब समय आ गया है कि गोंडवाना के राजनीतिक पार्ट का सहीं मूल्यांकन कर आगे बढें । सच को सच कहकर सामने लाने की हिम्मत होनी चाहिये "भावनाओं में बहकर उसे आत्मासात कर लेना मूर्खता से कम नहीं ।" गोंडवाना की राजनीतिक इकाई को गोंडवाना की तरह बनाये जाने के अनेक सुझााव प्रस्तुत किये गये लेकिन सभी सुझाव कई बार नकार दिये गये । म0प्र0 छ0ग0 में अनेक सामाजिक संगठनों के साथ गोंडवाना आन्दोलन का समन्वय क्यों नहीं ? कहीं हमारा दंभ या इगो का मामला तो नहीं । आपके शोध के लिये बहुत अवसर हैं । "आगे बढो भावनाओं से ज्यादा बुद्धि पर जोर डालो, गोंडवाना आंदोलन अब रूकने वाला नहीं । रोकने वाला भी इसे नहीं रोक सकता । गोंडवाना रथ निरंतर आगे बढेगा, सारथी भी समय समय पर बदलते रहेंगे । ध्यान बस इतना रहे कि औरों की तरह इतिहास में आस्थाओं को बदलने की जरूरत ना पडे हम प्रकुतिवादी हैं हमारे न्यायदृष्टि और आस्था का चुनाव प्रकृतिवादी होना चाहिये ।
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