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संविधान में पांचवीं अनुसूचि की ताकत"

"संविधान में पांचवीं अनुसूचि की ताकत"
आप सभी को ज्ञात है कि विगत वर्षों में निर्वाचन आयोग द्वारा राजनतिक क्षेत्रों का सीमांकन और पुनर्गठन हुआ था जिसमें आरक्षित क्षेत्रों की भौगोलिक सीमा बढाई गई, कहीं सामाजिक अनुपात को तहस नहस किया गया, कहीं सामाजिक राजनैतिक रूप से जागरूक क्षेत्रों से सीटें कम कर अन्यत्र किया गया, आम नागरिक को समझ में नहीं आया । चालाक राजनीतिज्ञों ने इसका भरपूर फायदा उठाया, अपनी सीटों को अपने मुताबिक घोषित कराने में सफल रहे । इस पुनर्गठन में सबसे ज्यादा नुकसानआदिवासी समुदाय को हुआ है ! कारण भी है कि इनकी भैगोलिक सीमा बढाने से प्रचार प्रसार में अधिक आर्थिक व्यय, बढी जनसंख्या वाले क्षेत्र होने के बावजूद सांसद मद या विधायक मद की राशि का क्षेत्रों में समान आबंटन आदि आदि .. परन्तु यह पुनर्गठन झारखण्ड राज्य को प्रभावित नहीं कर सका ? जानतें हैं किसलिये ! चूंकि देश में एकमात्र राज्य है जिसमें निर्वाचन आयोग को झुकना पडा और उसका पुनर्गठन नहीं किया । सभी सीटे पूर्ववत रहीं आखिर क्यों ! इसका जवाब है "पांचवी अनुसूचि की वास्तविक शक्ति" जो आदिवासी मंत्रणा परिषद के माध्यम से निर्वाचन आयोग को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया । इस शक्ति का अन्य राज्यों में उपयोग क्यों नहीं हो सका , जबकि इन राज्यों में भी राष्ट्रपति की अधिसूचना जारी की गई है । पांचवी अनुसूचि के मामले में मध्यप्रदेश क्यों पिछड रहा है इसका हल क्या है, इस गुत्थी को सुलझाये बिना पांचवी अनुसूचि पर बात करना बेमानी हो सकती है । इस विषय में अगली पोस्ट में जानकारी देने का प्रयास करते हैं - जय सेवा !

"पांचवी अनुसूचि की ताकत" part 2
पांचवी अनुसूचि की ताकत के संबंध में अगली चर्चा यह है कि जब राष्ट्रपति के यहीं से अनुसूचित एरिया के लिये राज्यों को नोटिफिकेशन जारी हुआ जो राज्य के राज्यपाल द्वारा उस नोटिफिकेशन के मार्फत राज्य मंत्रणा परिशद की राय से स्थानीय नोटिफिकेशन जारी नहीं किया जाना 5वीं अनुसूचि का कमजोर हिस्सा है इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए राज्य सरकारों ने स्थानीय मंत्रिमंडल निर्णय के अवैध निर्णय से पांचवी अनुसूचित विकासखण्ड बनाकर आदिवासी विकास के नाम पर राज्य सरकार के नियन्त्रण में ले लिया जबकि घोषित क्षेत्र में राज्यपाल द्वारा एैसे क्षेत्रों को आदिवासी स्वायत्त परिषद के नियंत्रण में आदिवासियों का प्रशासन होता लेकिन एैसा नहीं होने के कारण इन क्षेत्रों का प्रशासन राज्य की मर्जी से चल रहे हैं । इन क्षेत्रों में प्रशासनिक अधिकारी भी गैर जनजाजि नहीं हो सकता था । राज्यपाल के द्वारा आदिवासी मंत्रणा परिषद के सुझाव पर राज्यस्तरीय नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है जो अभी तक नहीं हो पाया है । तभी तो अनुसूचित क्षेत्रों में गैर जनजातीय प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति कर आदिवासी स्वशासन के सपने को चूर चूर किया जा रहा है । राज्यपाल और मंत्रणा परिषद की शक्तियों का उपयोग राज्य सरकार करती है और जब चाहे किसी क्षेत्र में अपनी मर्जी लादकर भूमि का अधिगृहण ग्राम पंचायतों पंचायतों को तोडकर नगर परिषद नगरपालिकाओं की स्थापना कर अनुसूचित क्षेत्रों की स्वायत्तता को प्रभवित करती रहती है । हमारा समुदाय अपनी आखों के सामने अपने शक्तिशाली हथियार का इस्तेमाल करने से वंचित हो जाती है । हमें सदैव ध्यान रखना चाहिये कि देश के संविधान में जितने भी नियम उपनियम बने हैं ये किसी बात के होते हुए भी पांचवी ओर छठीं अनुसूचि को प्रभावित किये बिना ही लागू मानी जायेंगी यदि कोई नियम या उपबंध के लागू होने से पांचवी अनुसूचि के अधिकार प्रभावित होते हैं तो एैसे नियम अवैध और शून्य माने जायेंगे । और ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह भी है कि संविधान के जितने भी नये नियम उपबंध या संशोधन होते हैं उनमें यह बात स्पष्ट तोर पर उल्लेखित किया जान अनिवार्य होता है कि अमुक कानून या नियम पांचवी और छठीं अनुसूचि के उपबंध को प्रभवित किये बिना लागू होंगे । इन सब बातो पर आप विचार करें कि आदिवसी कौन है उसका देश में क्या स्थान है । असीम अधिकाररों का मालिक आदिवासी अपने ही देश में गुलामी का जीवन जीने को मजबूर है आखिर क्यों । पांचवीं अनुसूचि पर समीक्षा लगातार जारी रहेगी इसलिये हमें संविधान के नियम कानून उपबंधों पर लगातार अपनी दृष्टि डालते रहें । जय सेवा ! (गुलजार सिंह मरकाम)

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