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"जय बडादेव या जय बुढादेव"



"जय बडादेव या जय बुढादेव"
साथियों काफी दिनों से इस विषय पर लिखने की इच्छा हो रही थी लेकिन किन्ही कारणों से नहीं लिख पा रहा था । हम हम सब मिलकर गोंडवाना के आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुचाने में जी जान से जुटे हैं ! वहीं कभी कभी कुछ लोगों के प्रश्न या अकारण विवाद, कलम को रोक नहीं पाता । कुछ लोग अभी भी बडादेव, बुढादेव के संबंध में ,ये सही है, ये सही नहीं है या बडादेव कहो बुढादेव कहो, फडापेन कहो आदि बाते सामने लाते हैं । इस विषय में मेरा मत है कि बडादेव और बूढादेव अलग अलग परिस्थितियों  में प्राशंगिक हैं । जैसे जय बुढादेव को ही ले लें गोंड तथा इनकी समस्त उपजातियों में प्रत्येक गोत्र की अपनी देव व्यवस्था है और प्रत्येक गोत्र समूह का अपना पेनकडा, खलिहान, बुढादेव स्थल साजा या सरई के पेड में है । इस स्थान में उस गोत्र परिवार के सभी सदस्य अपने परिवार के मृत जीव को अपने पुरखें के साथ मिलाने का प्रचलन है । याद रहे कि जिस गोत्र का स्थान होगा उसी गोत्र का व्यक्ति उसमें कुन्डा मिलाने की प्रक्रिया के माध्यम से शामिल किया जाता है, अन्य गोत्र के व्यक्ति को उसमें नहीं मिलाया जाता इससे स्पष्ट होता है कि वह स्थल जो साजा या सरई का होता है उस गोत्र के कुल या आदि पुरूष या उस वंश का मूल स्थान होता है अर्थात उस वंश या कुल का सबसे बुजुर्ग है ,उसे बूढादेव कहना उचित है , जिसे पूजा के वक्त स्मरण करने में बुढालपेन कहते हुए स्मरण किया जाता है । जहां तक जय बडादेव का प्रश्न है वह गोत्र से बंधा मामला नहीं है । जय बडादेव सार्वजनिक मामला है । इसमें सभी गोत्रधारी एक साथ मिलकर पूजा अर्चना करते हैं । जिस तरह बुढादेव में गोत्र का सल्ला गांगरा शक्ति स्थापित रहते हैं जिन्हें हम ऋण और धन शक्ति के रूप में मानते हैं बडादेव वही सार्वजनिक ऋण और धन शक्ति है । इसलिये गोत्र और वंश के उपर समाज आता है ,इसलिये समाज के अभिवादन के लिये बडादेव, पेरसापेन, फडापेन आदि नाम संबोधित है । परसा, फडा का मतलब भी हिन्दी भाषा में बडा ही होता है इसलिये जय परसापेन, जय फडापेन का उपयेग सामूहिक रूप से किया जाय तो एकरूपता हो सकती है अन्यथा हम इसी विवाद में कि बडादेव नहीं, बुढादेव कहो बुढादेव नहीं, बडादेव कहो के झमेले में ना पडे रहें आन्दोलन को आगे बढायें । जय फडापेन जय परसापेन जय बडादेव ।

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