Skip to main content

"हमारा गोन्डवाना"

"हमारा गोन्डवाना"
गोन्डवाना आन्दोलन के बढ़ते प्रभाव को देखकर,गोन्डवाना का दुश्मन भी चारों ओर से हमले की तैयारी कर रहा है। गोन्डवाना आन्दोलन की राजनीतिक शाखा ने किसी तरह आपसी तालमेल और बातचीत से समस्या को सुलझाकर सन्गठन को कमजोर होने से बचा लिया।परन्तु आन्दोलन के आधार तत्व भाषा,धर्म,सन्सक्रति तथा उस पर लिखित साहित्य पर हमला आरंभ हो चुका है।अब तक गोन्डवाना आन्दोलन का आधारिक साहित्य जो अधिकतर तिरुमाल मोती रावन कन्गाली जी,तिरुमाल व्यन्कटेश आत्राम,तिरुमाल बीआर ढोके,तिरुमाल रन्गेल सिंह मन्गेल सिंह भलावी तिरुमाल भावसिह मसराम एवं तिरुमाल कोमल सिंह मरावी सहित कुछ ही साहित्यकारों ने गोन्डवाना की मूल भावना को लेकर साहित्य सृजन किया है। परन्तु इन साहित्यकारों के काम को आगे बढ़ाने की बजाय इनपर आलोचना का साहित्य बड़ी तेजी से आने की कोशिश में है।वह भी मनुवादी मानसिकता से गोडियन चेहरा के रूप में !ताकि गोन्डवाना का गोन्डी जन दिग्भ्रमित हो जाये,मूल साहित्य पर अविश्वास करने लगे। आन्दोलन करने के बजाय आपस में तर्क वितर्क करके समय गवाये ।इसी तरह गोन्डवाना आन्दोलन का आधार अभिवादन"जय सेवा,जय बडादेव,जय गोन्डवाना"से आरंभ किया गया जिससे गोन्डवाना आन्दोलन बढते चरन मे वर्तमान मुकाम पर है,परन्तु आन्दोलन की धार को कमजोर करने के लिये इस पर भी छेडछाड आरंभ हो चुका है जिसपर सूक्ष्म दृष्टि डालने की आवश्यकता है,इसमें भी हमारे ही समाज को हथियार के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।आश्चर्य की बात यह भी है कि आन्दोलन की आधारिक प्रष्ठभूमि "उत्साह से दायें हाथ में मुट्ठी बान्धकर जयकार करने की है परन्तु इस पर बायें हाथ से मुट्ठी खोलकर जयकार किए जाने की असफल कोशिश की जाने लगी है यह गोन्डवाना आन्दोलन पर हमला नहीं तो क्या है ! इसके लिये भी हमारे लोगों को ही हथियार बनाया जा रहा है।इसके साथ ही एकऔर कार्यवाही को भी अन्जाम दिया जा रहा है। गोन्डवाना आन्दोलन के कर्णधारों ने धर्म के लिए सप्तरन्गी और समग्र क्रांति के लिये एक राष्ट्रीय स्तर का पीला रंग निर्धारित किया ताकि आन्दोलनकारियो में एकरूपता झलके ,परन्तु गोन्डवाना अभी पूरी तरह पीला नहीं हुआ और उसे सात रंग में विभाजित करने का प्रयास किया जाने लगा है । अब समाज नहीं गोत्र केन्द्रित सन्गठन स्थापित होने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। क्या इस पर बुद्धिजीवियों को चिन्तन मन्थन नहीं करना चाहिए ? मेरी व्यक्तिगत राय है कि गोन्डवाना आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिये आन्दोलन के आधारिक पहचान,आधारिक साहित्य,अभिवादन और आधारिक रन्ग के साथ छेडछाड नहीं होना चाहिये। अस्वस्थ समाज को कुछ समय तक कई मामलों में परहेज की आवश्यकता होती है। कुछ चीजें पाचन शक्ति को प्रभावित करती है। स्वस्थ समाज हर चीज़ को पचाने में सक्षम होता है ।हमारा समाज किस स्तर पर है आप सभी जानते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि