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"प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह"



"प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह"
प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह आज सम्पूर्ण गोंडियन गणों में आस्था और विष्वास के रूप में स्थापित हो चुका है । षनैः षनैः इसे जानने की जिज्ञासा जाति व्यवस्था के जाल में फंसकर हमसे दूर हो चुके अन्य गोंडियन गणों में दिखाई दे रही है । वहीं दुष्मन की नजर भी इस पर लगातार है । एैसे मौके पर इस प्रतीक की गरिमा और व्यापकता का विषेष घ्यान रखने की आवष्यकता है । अन्यथा आस्था और विष्वास अंधश्रद्धा में बदलकर फडापेन की गरिमा और व्यापकता को सीमित कर सकती है । मूलनिवासी गणों की हजारों वर्ष पुरानी मान्यतायें जो पूर्ण वैज्ञानिकता लिये हैं । आज उनकी अच्छी प्रस्तुति या व्याख्या के अभाव में पिछडेपन का प्रतीक बनकर कथित विकसित समाज के सामने कमजोर दिखाई देती हैं । चूंकि गोंडियन गणों का मूल दर्षन पूर्णतः जीव जगत कल्याण और प्रकृति संतुलन पर आधारित है इसलिये हमें सावधानी बरतने की आवष्यकता है ।
(मुझे एक पुस्तक पढने का अवसर मिला जिसके लेखक कोई वरकड हैं जो नागपुर से ही प्रकाषित हुई है इस किताब में तिरूमाल वरकड ने इस प्रतीक चिन्ह सहित अन्य संस्कृतिक गतिविधियों के संबंध में समालोचना करने का प्रयास किया है । मुझे यह समालोचना उनके द्वारा की गई नहीं लगती उन्हें केवल गोंड लेखक के रूप में प्रस्तुत कर दुष्मन हमारे बीच कुछ पहुंचाने का प्रयास कर रहा है एैसा जान पडता है । अतः हमें साहित्य के क्षेत्र में भी सावधानी की आवष्यकता है ।)
" कभी कभी लगता है कि फडापेन प्रतीक चिन्ह को हम व्यापक बनाने के बजाये संकुचित करने में लग जाते हैं इसे गोंड का बडादेव बताकर इसकी व्यापकता के प्रकाष को ढकने का प्रयास करते हैं । यही वजह है कि आस्था और श्रद्धा के कारण इस प्रतीक चिन्ह को सम्पूर्णता के साथ प्रस्तुत नहीं कर अपने अपने तरीके से प्रस्तुत कर वाटस एप फेसबुक ब्लाग तथा अन्य सोषल मीडिया में वायरल करते हैं । वायरल होना अच्छी बात है परन्तु कल उठने वाले प्रष्नों आपको ही इसका जवाब देना होगा । इसलिये सभी से निवेदन है कि प्रतीक चिन्ह को बनाते समय स्थापित करते समय उसके समग्र दर्षन का ख्याल रखा जाय । यह प्रतीक चिन्ह हमारे पूर्वजों के द्वारा अलग अलग क्षेत्रो भूभाग में किसी ना किसी रूप में एक एक हिस्से को सहेजकर रखे गये अवषेसों का समग्र एकात्म रूप है ।" आईये इस संबंध में कुछ मोटी मोटी बातें चित्र सहित जानने का प्रयास करें ।
1. प्रकृति भूभाग या आधार जिस पर सम्पूर्ण जीव जगत टिका हुआ है जन्मता विलीन होता है । 750 गोत्रों की व्यवस्था इसी धरती पर संचालित है अतः अंकित किया गया है । 2. इस धरती पर गण्ड जीव जो शरीर मानसिक और बौद्धिक तत्व के साथ विकसित होता है । त्रिमार्ग ही है उसे यथा अंकित किया जाय । 3. गण्ड जीव के विकासक्रम में ऋण और धन यानि सल्ला गांगरा शक्ति जो सदैव नवसृजन का उत्तरदायी होता है इसे प्रदर्षित किया गया है । गोलाकार के बीच में छिद्र होना चाहिए । 4.यह भाग समाज के रूप में विकसित होकर 12 सगा घटको के समूह रूप में सारी दुनिया में दिखाई देता है जो प्रकृति प्रदत्त प्रमुख चार रक्त समूह में विद्धमान हैं । यही जीवित वेन हैं । जो मरने पर पेन के रूप में हमारी व्यवस्था में सदैव विद्धमान रहते हैं । इसमें 12 किरण ही फूटना चाहिए 5.यह नुकीला घेरा उपरोक्त व्यवस्था को राजकारण से संरक्षण दिये जाने के रूप में है जिन्हें हमारे 88 शम्भुओं द्वारा संरक्षक के रूप में दर्षाया गया है । इसमें केवल 88 नोक ही बनाये जायें ।

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