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"इडपाची (इरूक+ आकी ,इरू+ पाती )प्रचलित टोटम पर किंवदंती"


गोंडियन गोत्र व्यवस्था में प्रत्येक गोत्र के साथ कोई ना कोई कुल चिन्ह पेड पौधे जानवर पक्षी आदि से जुडा होता है । इसी संबंध में आज इडपाची जोकि येर्वेन सगाओं (सात देव) शाखा में आते हैं इनसे जुडी कुछ बाते आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं । हो सकता है इस गोत्र से संबंधि अन्य क्षेत्रों में अलग तरीके से व्याख्या या संदर्भ हो सकते हें । परन्तु मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में इडपाची गोत्र से संबंधित उनके टोटम के संबंध में यह किवदंती प्रचलित है ।
किसी समय की बात हे जब गोंडवाना के गणों को गुरू के (पहांदी पारी कुपार लिंगो का नाम नहीं बताया गया ।) के द्वारा पेन और टोटम का वितरण या नामित किया जा रहा था । कुछ समूह टोटम प्राप्त करने जा रहे थे, तो कुछ समूह अपनी पहचान पाकर लौट रहे थे । इडपाची समूह के संबंध में किवदंती है कि यह समूह जब अपना टोटम सेही (जंगली जानवर जिसके कांटेदार बाल होते हैं) तथ वृक्ष महुए का पत्ता का संदेश लेकर वापस आ रहे थे, तो रास्ते में रोमी मरा (सुस्ताने के लिये छायायदार पेड) के नीचे आराम करने लगे । इतने में क्या देखते हैं कि एक सेही जानवर ने महुए के पेड के नीचे अपने बच्चों को जन्म देने के लिये महुए के पत्तों का पत्तल बनाकर उसमें अपने बच्चों को जन्म दिया और उस समय में आसपास कुछ खाने पीने की व्यवस्था नहीं होने पर ,उसने अपने बच्चों के लिये पेड से गिर रहे महुए के फूलों को खिला रही थी । यह देख कर इडपाची समूह को लगा कि हमें जिस टोटम को दिया गया है "सेही और इरूक मडा "हमारे लिये पूजनीय है जिसकी सुरक्षा हमारा कर्तव्य है, लेकिन इस सेही ने इरूक पत्तों का पत्तल बनाकर उसमें बच्चे दे दिये और महुए के फूल को अपने बच्चों को खिला रही है इसका मतलब हम महुए के पत्ते को तोडेंगे नहीं नुकसान नहीं पहुंचायेंगे चूंकि इस पत्ते में हमारे देवता के बच्चों का सुरक्षित प्रसव (जन्म) हुआ है लेकिन उसके फूल ओर फल का उपयोग उसने अपने बच्चों के पोषण के लिये किया है , इसलिये हम फूल और फलों का उपयोग अपने उदर पोषण के लिये कर सकते हैं । तब से इडपाची समूह महुए के पत्ते को तोडते नहीं यदि महुए के पेड के आसपास भोजन के लिये बेठे हैं, इस समय यदि यह पत्ता टूटकर या कही से भी भोजन की थाली में आ जाये तो वे इस भोजन का सम्मान पूर्वक त्याग कर देने की परंपरा आज भी प्रचलित है ।- gs markam

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