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"पांचवीं अनुसूचि और रूढी पंचायतें"


सभी जानते हैं कि गांव में आज भी सामाजिक पंचायतो की परंपरा अलिखित रूप से हर समुदाय में कायम है । इस पंचायत के निर्णय को समाज आज भी सम्मान देता है । ग्राम समुदाय का मुकददम या पटैल के साथ साथ उनके सहायक कोटवार, दीवान तथा धार्मिक ,सांस्कृतिक, वैवाहिक क्रियाकलापों में सदैव अपना योगदान देने वाला बैगा ,भुमका या पडिहार आज भी अपना योगदान दे रहे हैं । दुर्भाग्य से यह रूढी परंपरा अब धीरे धीरे कमजोर होती जा रही है । इसका एक कारण है शासन प्रशासन ने इस परंपरा में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है । यथा ग्राम प्रमुख मुक्कदम या पटैल सरकारी महकमे का राजस्व वसूली करने वाला नौकर मात्र बनकर रह गया है । कोटवार जो ग्राम समुदाय के हर आदेशों का पालन करता था आज वह तन्खैया पुलिस बनकर पुलिस विभाग का मुखबिर बनकर रह गया है । न्याय व्यवस्था की कमान शासन द्वारा नियुक्त ग्राम न्यायधीश के हाथ चली गई । इस तरह हमारी रूढी परंपरा और स्वशासन को "त्रिस्तरीय पंचायत राज" कायम करके पूरी तरह पंगु बना दिया गया है । यह परंपरागत पंचायत व्यवस्था प्रशासन के पूरे नियंत्रण में चली गई है । आज हम पांचवी अनुसूचि वाले क्षेत्रों जिला, विकासखण्ड तथा ग्राम स्तर पर मजबूत किये बिना पूर्णतया क्रियानिवत नहीं कर पायेंगे । अत: हमें पांचवी अनुसूचि में उल्लेख्ति अंतिम इकाई ग्राम, टोला ,पारा की इकाई को सशक्त करना होगा । जब इसे शसक्त करने की दिशा में काम करना आरंभ कर दिया है, तब अपने ही बीच के लोग इसकी उपयोगिता पर सवाल खडे कर रहे हैं । गैर आदिवासीयों को उकसा रहे हैं कि अब तुम्हारी दुकानदारी, व्यवसाय बंद हो जायेगी अत इसका विरोध करो, आदि आदि । अत धोषित क्षेत्र के सजग कार्यकर्ता और बुद्धिजीवि इस पर अवश्य नजर रखें । मेरा मानना है कि रूढी परंपरागत पंचायत को सशक्त करने के लिये किये जा रहे अभियान में एक बात का ख्याल रखा जाय कि पूर्व से ही संचालित समितियों का रिकार्ड तैयार किया जाय उस कमेटी की सूचि का विधिवत विज्ञापन हो, समिति को उसकी शक्ति का ज्ञान दिया जाना आवश्यक है । नार ,टोला ,पारा में यदि नई समिति का गठन किया जाना हो तो विशेष सावधानी आवश्यक है कि, समिति को व्यवस्थित करते समय पूर्व से ही अलिखित अव्यवस्थित सामाजिक पंचायत को उनकी सहमति से तैयार कर ली जाय अन्यथा पुरानी समिति के मुकददम या पटैल को ठेस लग सकती है वह उसका विरोध भी कर सकता है । इस तरह अच्छे काम में बाधा आ सकती है । कारण कि यह अधिकारों के साथ साथ समुदाय के मुखिया और समुदाय के मान सम्मान का मामला है । यदि अधिसूचित क्षेत्रों में यह कार्य विधिवत पूर्ण होता है तब हम पांचवीं अनुूसूचि के प्रावधानों का उचित क्रियान्वयन कराने में शतप्रतिशत सफल हो सकेंगे । आशा है इस दिशा में कार्य कर रहे समाज के बुद्धिजीवि इस व्यवहारिक पक्ष की ओर अवश्य ध्यान देंगे ।-(मध्यप्रदेश की परिस्थितयो के संदर्भ में)
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