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"हम और हमारा देश किस व्यवस्था की ओर जा रहा है ।"


जिस देश में आरोपी अपने सिर पर लगे आरोपों का स्वयं फैसला देने लगे । तब उस देश की न्याय व्यवस्था को क्या कहेंगे । 
लोग भले समझें या ना समझें लेकिन न्याय व्यवस्था में इस तरह की हरकत भविश्य में तानाशाही व्यवस्था कायम होने का संकेत देता हे । जहां सत्ताधारी तानाशाह सारी शक्ति को अपने हाथ में ले लेता है । देश में सत्ताधारी दल के द्वारा कुछ लिये जा रहे निर्णय भी कुछ इसी तरह के फेसले और निर्णय लेते नजर आ रहे हें । यहां तक राष्टपति के विशेषाधिकार और बार बार निर्देशों के बावजूद उनके आदेश ओर जनहित में की जा रही चिंता को नजरंदादाज करना क्या संकेत देता है । संविधान के महत्व को लगातार कम करते हुए व्यक्तिवादी सोच के महत्व को आश्रय देना । एैसे कथित महापुरूष और दुनिया के गिने चुने देशों की व्यवस्था की हिमायत करना, जो कि तानाशाही व्यवस्था से दुनिया में आम जनता को गैस चेम्बरों में डालकर सामूहिक हत्या कराना । । मानवता को दरकिनार कर विश्व विजय का लक्ष्य निर्धारित करना । -gsmarkam

"प्रिंट और इलेक्टानिक मीडिया में शीर्षक का असर"
"म0प्र0 बोर्ड का 2017 का परिणाम और समाचार पत्रों की मानसिकता ।"
मजदूर का बेटा बारहवी में मेरिट में आया ए झाडू पोछा करने वाली लडकी 10 वी परीक्षा में टाप पर रही फलां जाति या वर्ग का लडका सबसे ज्यादा अंक लेकर प्रवीण्य सूचि में प्रथम आया आदि सुनकर अखबारों में पढकर लग रहा है कि मीडिया ने एैसा महसूस कराने का प्रयास किया कि केवल धनवान आदमी का बेटा ही मेरिट में आ सकता है । गरीब या कथित छोटी जाति का लडका नहीं कभी खबरों में आपने सुना है कि किसी धनवान का बेटा अव्वल आया या फलां उदयोगपति की बेटी ने मेरिट हासिल की या किसी बामन के बेटे ने मेरिट हासिल की । आखिर क्यों नहीं छात्र तो छात्र होता हे गरीब का हो या बडे का खबर नवीस क्या यह नहीं लिख सकते कि फला गांव शहर जिला का फलां मेधावी छात्र मेरिट में आया । आखिर एैसा लिखकर क्या संदेश देना चाहती है प्रिंट मीडिया । कहीं एैसी बात तो नहीं कि धनवान या उच्च जाति ही योग्यता का पर्याय हैं बाकि तो कभी कभी इस मुकाम पर पहुचते हैं आदि । मतलब कि गरीब या छोटी जाति कही जाने वाले ने विशेष योग्यता हासिल कर ली तो उसकी गरीबी ओर जाति का दोष है कि ,वह कैसे अव्वल आ गया ।

क्या शीर्षक यह नहीं हो सकता था कि ज्येति सिंह के साथ सामूहिक बलात्कार करने वालों ओर बिल्किस बानू के साथ कुकृत्य करने वालो को सजा

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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