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"जनजातियों का धर्म कोड हो कि ना हो ।"

बुद्धिजीवि ध्यान दें 
कुछ साथियो का मत है कि हम धर्म पूर्वी हैं । ध्यान रहे दुनिया का कोई भी इंसानी नस्ल धर्म पूर्वी ही है । प्रकृति के सामान्य वन्य जीवन से अपने आपको व्यवस्थित करने के लिये जिन समूहो ने शनै शनै अपने अनुकूल व्यवस्था बनाई अपने समुदाय को व्यवस्थित कर व्यवस्थित जीवन जीने की राह बनाई आगे चलकर यही उसके जीवन का मार्ग बना जिसे चाहे धर्म कहें मार्ग कहें पुनेम कहें एक ही बात है परन्तु केवल हम ही धर्म पूर्वी हैं तो हमारा भी तो जीवन जीने का कोई मार्ग रहा होगा उसका कुछ नाम का संबोधन हो, जिसे हम केवल धर्म पूर्वी कहकर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकते अत हमारा भी कोई धर्म रहा है । इसलिये मैं इस तर्क से सहमत नहीं हो सकता कि हमारा कोई धर्म नहीं रहा है । जिसे जरूर सामने लाया जाय भले ही वह किसी नाम से संबोधित हो । अन्यथा हम सदैव धर्मांतरण को शिकार रहेंगे कारण कि हमारा धर्म कोड नहीं है इसलिये धर्मांतरण कानून का हमें के दायरे में हमारा समुदाय नहीं आ पायेगा । कोई भी गैर धर्माधिकारी हमें धर्मांतरित कर लेगा जैसे आज भी कर लेता है कोई हमारी रक्षा के लिये नहीं आता । कुछ लोगों का मत है कि अधिकारों की बात करें अधिकारों की बात को दबाने के लिये धर्म नाम की चीज को सामने लाया जा रहा है । मैं यह कहना चाहता हूं कि अधिकारों की लडाई हम लगातार लड रहे हैं जो जारी रहेगा । परन्तु आज आदिवासी समुदाय पिछली जनगणना से हिन्दुओ की संख्या से अलग होकर अगली जनगणना में और आगे बढ जाने वाला है तब इस ताकत को कमजोर करने के लिये इस पर आरोप लगाना कि हमारा धर्म नहीं हम धर्मपूर्वी हैं हमारा कोई धर्म नहीं है कहना कहलवाना किस बात को संकेत है, इसे समझा जाय । जनजातियों का धर्मकोड हो इस विषय पर देश में सेमिनार के माध्यम से मात्र रायसुमारी चल रही है जिसे निर्धारित किया जाना बाकी है इस बीच ही दबे स्वर से इसकी दिशा को मोडना क्या संकेत देता है । कहीं एैसा तो नहीं कि इससे धर्मांतरण कराने का रास्ता बंद हो रहा हो जिससे सबसे अधिक प्रभाव हिन्दू और ईसाई समुदाय पर पडने वाला है । हिन्दु संख्या घटेगी ईसाई अपनी परंपरा बचाकर नहीं रखा तो उसके अधिकार प्रभावित हो सकते हैं । यह शास्वत सत्य है किसी भी समुदाय को ठेस नहीं लगना चाहिये जब सभी समुदाय अपने धर्म के प्रति सजग हैं तो हमें भी अपने धर्म के प्रति सजगता हमारा कर्तव्य है । -gsmarkam

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