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आदिवासी स्वशासन और नियंत्रण के लिए परम्परागत रूढी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए राज्यों में स्थानीय नियम बनाए जाने हेतु राज्यपाल पर दबाव बनाया जाए"

आदिवासी स्वशासन और नियंत्रण के लिए परम्परागत रूढी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए राज्यों में स्थानीय नियम बनाए जाने हेतु राज्यपाल पर दबाव बनाया जाए"
हमारे बहुत से मित्र ५वी अनुसूचि और पेसा कानून पर लगातार अध्ययन कर रहे हैं। पहली बात तो हमें यह ध्यान देना है कि केन्द्रीय कानून में जब ५वी अनुसूची के अन्तर्गत जनजाति बहुल १० राज्यो को अधिसूचित किया गया तब उन राज्यों को छ: महीने के भीतर राज्य में क्रियान्वयन के लिए नियम बना लेना चाहिए था लेकिन किसी राज्य ने स्थानीय नियम जिसके माध्यम से क्रियान्वयन होता नही बनाये । प्राप्त जानकारी के अनुशार अभी अभी दो चार सालो मे चार राज्यो मे कानून नियम बने होने की जानकारी मिल रही है । मध्यप्रदेश तो अभी तक इससे अछूता है । खैर जनजाग्रति से इसके नियम भी बन जाये । परन्तु जिस चालाकी से राज्यो ने ५वी अनुसुचि के नियम बनाने के पूर्व पेसा कानून को लाकर उसमे ५वी अनुसूचि के कुछ प्रावधानो को शामिल कर आदिवासियो को सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हुए स्व शासन और नियन्त्रण को त्रिस्तरीय पन्चायती राज के अधीन कर दिया और शेड्यूल्ड एरिया मे एक और शासन तन्त्र नगर निकाय को अधिरोपित कर दिया । पन्चायती राज व्यवस्था और नगर निकाय व्यवस्था के कानूनो पर फटाफट नियम बनाकर जनता के ऊपर थोप दिया । जबकि पान्चवी अनुसूचि का कानून और उसके केन्द्रीय नियम चीख चीख कर कह रहे है कि सन्सद और विधान सभा का कोई कानून इन क्षेत्रो के आदिवासियो की बिना मर्जी के लागू नही होन्गे साथ ही राज्य और केन्द्र सरकार का दायित्व भी है कि कोई कानून लागू करने के पूर्व यह भी देखेगा कि कही जनजातियो की रूढि परम्परा धार्मिक, सान्सक्रतिक सामाजिक न्याय व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव तो नही पडेगा । पूर्वावलोकन की जिम्मेदारी थी । परन्तु इस मुद्दे पर किसी सरकार या प्रतिनिधियो ने ध्यान दिया ? क्या पेसा मे समाहित पन्चायती राज व्यवस्था तथा नगर निकाय कानून लागू करते समय कोई रायशुमारी की गई । क्या ऐसे कानून लागू करने के पूर्व जनजातियो पर प्रत्यक्ष या परोक्ष मे पडने वाले त्र्रणात्मक या धनात्मक प्रभाव पर कोई शोध या बहस हुई ? नही कुछ भी नही हुआ । वहीं आज ५वी अनुसूचि पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं को ग्राम सभा भ्रमित कर रहा है । कारण कि किसी कार्य के लिए ग्राम सभा आयोजन से लेकर दस्तावेजों को अग्रसर करने की भूमिका में पन्चायत तथा उसकी विभिन्न समितियों को महत्वपूर्ण बना दिया गया । जबकि अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की मूल इकाई "रूढी परम्परा की होना चाहिए जो ग्राम समुदाय की स्थायी समिति जैसे मुकद्दम दीवान,कोटवार , बैगा सहित अन्य पद होते हैं जो ग्राम का स्वशासन चलाते रहे हैं । पर इनके अस्तित्व को अनदेखा कर दिया गया । यही रूढी परम्परा की इकाई, ग्राम सभा के समस्त निर्णय और दस्तावेजों को अग्रेषित करने के लिए सक्षम है । परन्तु दुर्भाग्य से रूढी परम्परा के इस इकाई के नाम पर पेसा कानून के नियमों में राज्य सरकारों ने कोई नियम नहीं बनाये । इसलिये जिला न्यायालय, उच्चन्यायालय से हमें कोई राहत मिलना सम्भव नहीं । हा जनजाति वर्ग के मामले में हमें यदि कोई राहत मिलेगी तो वह है उच्चतम न्यायालय जहाँ सन्विधान के किसी भी कानून और नियम की उचित व्याख्या सम्भव है । आप सभी जानते हैं कि आज तक आदिवासी के कोई सामुदायिक अधिकार का निर्णय निचले अदालतों में नहीं जीता जा सका है । उसके लिये उच्चतम न्यायालय का दरवाजा ही खटखटाना पड़ा है । पारम्परिक ग्राम पन्चायतो का गठन हमारी शक्ति बढा सकता है इस शक्ति से हम सरकारों को स्थानीय नियम बनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं । यदि १० राज्यों ने पान्चवी अअनुसूची के सन्दर्भ में स्थानीय नियम बना दिये तब अनुसूचित घोषित किसी ब्लॉक या जिले में त्रिस्तरीय पन्चायती राज व्यवस्था और नगर परिषद/पालिकाओं का अस्तित्व स्वतः शून्य हो जायेगा । दोहरे तिहरे प्रशासन और नियंत्रण से मुक्ति मिलेगी -gsmarkam

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