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"पूनल वंजी पाबून"और "दिवारी पंडुंम(पाबून)"

"पूनल वंजी पाबून"और "दिवारी पंडुंम(पाबून)"
क्या है पूनल वंजी पाबून ये तो पहले ही "नवाखाई" (वंजी, गाडा (गुल्ली) जन्नांग, कायांग आदि)के रूप में मना लिया गया । जिसको गोंडी भाषा नहीं आती हो एैसे लोग इन नकली नाम की स्थापना से भ्रमित हो जाते हैं । गोंडियन त्यौहारों के नाम संज्ञा के साथ एक शब्दीय होते हैं विश्लेषण के साथ नहीं बताया जाता । यहां तो पूनल वंजी तिंदाना पाबुन यानि हिन्दी वाक्य का हूबहू अनुवाद हो गया । जबकि दिवारी कह देने से इससे संबंधित सभी क्रियाकलाप समाहित हो जाते हैं फिर ये नया नाम किसलिये ?
"एक और शब्द जिसका उपयोग कुछ लोग कर लेते हैं पडडुम यह शब्द गोंडी भाषा में कोई अर्थ नहीं निकालता इसका असली रूप पन्डुम है । जो पंडीना या पके हुए से संबंधित है । इस पर चर्चा कर मानक शब्द का उपयोग हो सके । ( बंदर के हाथों उस्तरा नहीं थमा देना चाहिये अन्यथा पूरी कटिंग बिगडने का डर रहता है । )" मेरे सुझाव को मित्रगण अन्यथा में ना लें । -gsmarkam

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मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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