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"दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है ।"

"दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है ।"
दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है । दिवारी यदि दीप महोत्सव होता तो गोंडी में दीपक को टवरी कहा जाता है । टवरी महोत्सव होता दीपावली नहीं । दिवारी में बैल गाय पूजन कृषि उपज जिसमें धान और खासकर उढद की दाल का उपयोग जिसके व्यंजन बनाकर गाय बैलों को खिलाकर बाद में धर के सदस्य खाते हैं सुबह उनके नाम पर खेरमाई खिरखा में आयेजन होता है । । तथा हमारे कोपाल अहीर द्वारा अपने गाम के गाय बैल बछडों के लिये छाहुर बांधना और बैगा भुमका दवार के साथ रात्रि में गांव के प्रत्येक द्वार में जाकर गौशाला में गाय बैलों की विशेष्ता बताते हुए आर्शिवाद देना । इस रात्रि के कार्यकृम में बैगा दवार कोपा अहीर और गुरूवा गांगो चंडी के स्थापनाकर्ता के साथ ढोलिया या गांडा के वादय यंत्र के साथ रात भर गृह जागरण का कार्य होता है । यही दिवारी है ,दीपक से इसका कोई संबंध नहीं यदि इसका मतलब दीपक से होता तो हमारे मूलविासी लोगों की भाषा में दीया को टवरी कहा जाता है टवरी महोत्सव होता । इसी दिन से गुरूवा गांगो अर्थात जंगो लिंगो की स्थापना की जाती है जो एकादशी तक मडई के रूप में आयोजित कार्यकृमों में सम्लित होते हैं जिसे मडई ब्याहना कहा जाता है । मडई में हर गांगो अपने ग्राम के सभी समुदाय को लेकर गुरूवा अर्थात लिंगो से मुलाकात करने जाते हैं । इसकी आंतरिक व्याख्या के लिये अधिक समय और शब्द चाहिये इसलिये इसकी व्याख्या मौटे तोर पर कर रहा हूं । पूरी व्याख्या समय मिलने पर की जायेगी । आज के इस दिवारी पर्व पर सभी मूलनिवासी मूलवासी गोंडियन सगाजनों को बधाई । विशेषकर भैसासुर को मानने वाले प्रबुद्धजनो को बधाई कि आप उनके नाम पर दिवारी मना रहे हैं । जिनके नामों को हासिये में रखा जा रहा है ।- gsmarkam

"अत् दीपो भव:"
इस दीपावली के मौके पर बुद्ध का "अत् दीपो भव:" दीपक की याद दिलाता है जो कहीं ना कहीं हिन्दुइज्म को दीपावली की शुभकामना देता प्रतीत होता है जबकि इस पर्व का दीपक से कोई संबंध नहीं ।-gsmarkam

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