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"संविधान में पांचवीं अनुसूचि का महत्व"

part-1 "संविधान में पांचवीं अनुसूचि का महत्व"
संविधान में पांचवीं अनुसूचि का महत्व इसलिये महत्वपूर्ण है कि आदिवासियों के लिये जल जंगल जमीन की रक्षा के साथ साथ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये जिसमें इनके संस्कार संस्कृति और रूढि परंपरायें संरक्षित होती हैं अधिक महत्व रखता है । शरणार्थी सिंधी के पास ना जल जंगल जमीन नहीं थी पर वे अपनी संस्कृति संस्कारों रूढि परंपराओं के बल पर आज देश के सबसे बडे व्यापारी हैं । आज वे सत्ता पर दखल देने लायक हो चुके हैं । मुस्लिम के पास भी इतनी जल जंगल जमीन नहीं पर वे अल्पसंख्यक होने के बावजूद हर जगह पर बराबर के भागीदार बने हुए हैं क्रिकेट , संगीत ,फिलम् व्यापार आदि में उनकी तूती बोलती है । वहीं जैन अल्पसंख्यकों के पास जल जंगल जमीन नहीं पर इनकी व्यापारिक प्रतिष्ठा के सभी लोग कायल हैं । इसलिये पांचवीं अनुसूचि से हमारी जल जंगल जमीन से अधिक हमारे संस्कृति, संस्कारों ,रूढि परंपराआओं को संरक्क्षण है इसलिये आदिवासी समुदाय और इसके युवा बहुकोंणीय लाभ की दृष्टि से पांचवीं अनुसूचि के आन्दोलन को पूरी तरह सफल बनायें -gsmarkam

part-2 “रवीस कुमार और वर्तमान मीडिया तंत्र”
रवीस कुमार NDTV prime time आप देश के आधुनिक “राहुल सांक्रत्यायन” और “पंडित आचार्य चतुर्सेन” हो । बस सच्चाई के पक्छ में इसी तरह बेबाक होकर खडे रहो । देश का हर बुद्धिजीवी,मानववादी आपको सदैव याद रखेगा-gsmarkam

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि