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“ जनजातीय समुदाय संविधान और लोकतंत्र का रक्छा कवच बन सकता है “

part -1 “ जनजातीय समुदाय संविधान और लोकतंत्र का रक्छा कवच बन सकता है “
चाहें तो ५अनुसूचित के अन्तर्गत घोषित राज्य , जिले या विकासखंड EVM से चुनाव होना रोक सकते हैं ।
इसके लिये ५ वीं अनुसूचि के अन्तर्गत प्राप्त अपने विधी के बल (परंपरागत रूढी प्रथा और स्वशासन ) को परिभाषित करते हुए , जिन राज्यों में स्थानीय नियम बने हैं वे राज्य अपनी परंपरागत पंचायतों से पारित प्रस्ताव को जिला कलेक्टर के माध्यम से TAC को या सीधे राज्यपाल को अपनी मंशा से अवगत करा दें । जिन राज्यों में ५ वी अनुसूचि के नियम नहीं बने हैं ऐसे राज्यों के अनुसूचित छेत्र की परंपरागत पंचायते कलेक्टर के माधयम से सीधे अपने (कस्टोडियन) राष्ट्रपति को अपनी मंशा से अवगत करायें । इससे अच्छा (Evm) को रोकने का कोई त्वरित उपाय नहीं हो सकता । ५ वीं अनुसूचि की यह ताकत EVM पर अविश्वास रखने वाले हर व्यक्ति , समाज और संगठन के लिये सहायक होगा । इसलिये जिन ५ वीं अनुसूचि अन्तर्गत घोषित राज्य , जिले या विकासखंडों में पारंपरिक पंचायतें सक्रिय नहीं , उन्हे अविलंब विधिवत सक्रिय की जाये । मित्रों, आदिवासियों की जीवन शैली और त्वरित नैसर्गिक न्याय प्रणाली से दुनिया ने लोकतंत्र का पाठ सीखकर अपना अपना संविधान बनाया है । ऐसे लोकतंत्र के मार्गदर्शक समुदाय को भारत में लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी है । आशा है प्रस्तुत लेखन लोकतंत्र के विश्वास को EVM जैसी अविश्वनीय यंत्र से छुटकारा दिलाकर भारत में स्वस्थ्य लोकतंत्र की स्थापना में सहायक होगा ।-gsmarkam

part-2 “पांचवीं अनुसूचि के कथित जानकार आखिर जेल में क्यों ?” 
मैने पांचवी अनुसूचि के कथित जानकार दोनो विशेषग्य बन्धुओं से आमने सामने पूछा था कि आदिवासियों के धर्म सबंधी मामले में आपके क्या विचार हैं इन्होने इस विषय पर चर्चा न करने की बात की तब मैने परंपरागत प्रथा और रूढी को स्पष्ट करने को कहा तब विशेषग्य बन्धु का कहना था कि इसे बताया नहीं जा सकता यह मेरी डिप्लोमेसी है । यानि समुदाय को आग में झोककर आदिवासियों को पांचवी अनुसूचि का पाठ पढाने वाले कथित विशेषग्य बन्धुओं का धार्मिक बैकग्राउन्ड जानो कि वे पांचवीं अनुसूचि की बात करते हुए आदिवासयों के बढते मूल धार्मिक समझ और आपके धार्मिक आन्दोलन के गति की दिशा बदलने का प्रयास कर रहे है कि आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता । जब कभी मैं कडवी बात लिख देता हूं तो लोग नाराज हो जाते है कारण कि, मेरी बातें लोगों को देर से समझ आती हैं । चिंतन करो कि आदिवासी अपनी रूढी परंपरा और प्रथा को अपने धर्म से चाहे उसे आदि/प्रक्रति/गोंडी या सरना कहें क्या उसे अलग करके अपनी पहचान को बचाये रख सकता है ? -gsmarkam

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