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"आदिवासी परिवार ही ग्राम का मुखिया है"

आदिवासी परिवार ही ग्राम का मुखिया है"
आदिवासी परिवार ही ग्राम का मुखिया है । इसका प्रमुख कारण है कि पुरातन काल से ग्राम स्थापना किसी आदिवासी समूह/परिवार के किसी ना किसी टोटम धारी परिवार से हुआ है। इसके अनेक उदाहरण देश के विभिन्न हिस्सों में  ग्राम के नाम स्थान के नाम पारा,टोला मोहल्ले के रूप में आज भी मौजूद हैं। यथा मरकानार, मरकाम टोला ,उइका बाडा । रावनबाडा सहित किसी टोटम या गोत्र ,परिवार या वन्श पर उल्लिखित हैं। इसी क्रम में उस ग्राम को बसाने वाले प्रमुख को अपनी पारंपरिक समुदाय व्यवस्था में ग्राम प्रमुख,मुखिया तथा मुकद्दम आदि नाम दिया गया, ग्राम स्थापना करने वाला वह परिवार सदैव पीढ़ी दर पीढ़ी सम्माननीय रहता है। भले ही वर्तमान परिस्थितियों में उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर या वह परिवार अशिक्षित है पर सामाजिक रूप से सम्माननीय होता है, कारण है कि उस परिवार के पुरखो ने उस गांव को बसाकर व्यवस्थित करने मे आरम्भिक भूमिका निभाई है । ग्राम की आवश्यकतानुशार वैध,भुमका,पुजारी के  साथ साथ उपयोगी क्रषि यन्त्रो के कारीगरो को आमन्त्रित कर ग्राम को सुखी और सम्रद्ध बनाया है । उसके इस योगदान ने ही उसे स्वत: सम्मानित किया है। जिन बाहरी लोगो उन्होने ग्राम की खुसहाली और सम्रद्धि के लिये बसाया है उन्हे ग्राम के निर्धारित प्रत्येक पारम्परिक नियम कानून का परिपालन करना अनिवार्य है । उल्लन्घन की स्थिति मे मुखिया के दिशा निर्देश पर अपराधी का  बहिष्कार,दन्डित करने या ग्राम से बाहर निकाले जाने का फरमान जारी करने का अधिकार भी मुखिया को है । उदाहरण के लिये मप्र के मन्डला जिले के ग्राम बेहन्गा की एक घटना है जो सन्योग से यह मेरा पैत्रिक ग्राम भी है लगभग १२ वर्ष पूर्व ग्राम के कोटवार जिसे कहीं कहीं चौकीदार भी कहा जाता है , के द्वारा ग्राम की शान्ति व्यवस्था में बाधक बन गया । इसका कारण था कि उसे सरकारी आदेश से पुलिस प्रशासनिक व्यवस्था से जोड दिये जाने के कारण ग्राम समुदाय पर रौब जमाने लगा ,ग्राम समुदाय दुखी हो गया पारम्परिक रूढि की शक्ति की जानकारी नही होने के कारण उस पर कोई कार्यवाही नही की जा रही थी , मुझे दूर से इसकी जानकारी प्राप्त हो रही थी सन्योग से ग्राम मे कुछ दिन प्रवास का अवसर मिला । ग्राम के मुखिया/मुकद्दम जोकि मरावी परिवार है से मिलकर ग्राम के वरिष्ठजनो   के साथ मीटिग करके मौखिक प्रस्ताव पारित करके उक्त व्यक्ति को अपराधी घोषित कर उसका बिहष्कार कर ग्राम की ओर से दिये गये कोटवारी भूमि से बेदखल कर अन्य कोटवार की नियुक्ति कर उक्त भूमि उसे सोप दी गई । बहिष्क्रत व्यक्ति ने हर तरह से सरकारी स्तर पर अपनी बहाली का प्रयास किया पर विफल रहा । इस तरह ग्राम समुदाय और मुखिया अपनी नैसर्गिक न्याय प्रणाली से ग्राम हित के लिये पूरी शक्ति का उपयोग कर सकता है । सन्विधान ने भी पान्चवी अनुसूची के तहत इसे मजबूती प्रदान की है । अत: सन्विधान के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों का मुखिया और मालिक आदिवासी है। इसलिये मालिक को तकलीफ देने वाली हर व्यवस्था/व्यक्ति /कम्पनी या सरकार की व्यवस्था को नकारने का अधिकार मालिक को है । वशर्ते मालिक सजग रहे ।-gsmarkam

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