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मैं विचार और व्यव्हार के बीच जीता हूं ।

1- मैं विचार और व्यव्हार के बीच जीता हूं ।
व्यक्ति से नहीं विचारों से प्रभावित होता हूं । 
मेरी सोच है कि विचार और व्यवहार का परिणाम यदि मूलनिवासी समुदाय के हित में है 
तो उसके लिये अपना सर्वस्व निछावर कर सकता हूं ।

2- "कडुवा सच"
पी ए संगमा का बच्चा भटक गया , झारखंड के गुरूजी भटकते नजर आ रहे हैं,किरोडी लाल मीना गुलाम हो गया पासवान ,आठवाले से कोई उम्मीद नही , मायावती , प्रकास अंबेडकर, जिग्नेश सुधर जाये तो उम्मीद है । अब तो केवल मूलनिवासियों को शरद यादव, लालू, छोटू वसावा ,वामन,विजय, मनमोहन वटटी ,हीराओं ,से कुछ उम्मीद है वरना गुलामी से उबर पाना मूलनिवासियों के बस में नहीं है ।

3- "जरा सोचें "
म0प्र0 प्रदेश में 60 प्रतिशत ब्रामनों के पास लायसेंसी हथियार के बंदूक,रिवाल्वर हैं । बाकी के पास अवैघ हथियार रखे हुए हैं , कुछ के पास दिमागी हथियार है । असली युद्ध क्रांति के समय कैसे मुकाबला होगा ।

4- "इशारों को अगर समझों तो, राज को राज रहने दो ।"
"मूलनिवासियों की असली आजादी की लडाई"
मूलनिवासियों तुम्हें असली आजादी ही चाहीये तो । शहर से नहीं गांव से खरपतवार को साफ करना शुरू करो । शहर से करोंगे तो तुम अल्पसंख्यक हो, गांव से करोगे तो वे अल्पसंख्यक हैं 

5- "आदिवासियों को वामन मेश्राम ,विजय मानकर , डा0 पुरूशोत्तम मीणा मनमोहनशाह वटटी, हीरासिंह मरकाम प्रकास अंबेडकर और मायावती के साथ शरद यादव का साथ जरूरी है ।"
देश का मूलनिवासी अनु0जाति जनजाति क्या शरद यादव को अच्छी तरह पहचान पाया है नहीं, उसे पहचानने के लिये आपके पास मूलनिवासी विचारधारा की दृष्थ्टि चाहिये अन्यथा शरद जी के विचार और व्यव्हार को समझ पाना कठिन है । देश में यदि कोई नेता है तो मूलनिवासी हित के लिये बडी आवाज शरद यादव हैं, इनको साथ लिये बिना कोई मूलनिवासी आन्दोलन वर्तमान समय में सफल नहीं हो सकता । चिंतन करें क्या ये बात सच्चाई के करीब है -
-gsmarkam

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