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मनु और मनुवाद

"मनु और मनुवाद"
मनु के जीन में ही साम,दाम, दंड, भेद समाया हुआ है , एैसे में उसकी औलादों के रक्त से यह गुण कैसे निकल सकता है । इसलिये आप इन पर कितना भी विश्वास करेंगे कहीं ना कहीं कभी ना कभी आपको धोखा ही खाना पडेगा । यही कारण था कि पेरियार ने उनके लिये सीधा सीधा कहा था कि सांप और बामन एक साथ मिले तो पहले बामन से निपटो,क्योकि सांप को पहचानकर बिल से निकाल कर मार लोगे पर बामन अपना रंग बदलकर आपके बीच छुप जायेगा उसे ढूंढना मुस्किल होगा । इनके इसी गुण के कारण अंगेजों ने भी स्पष्ट कहा था कि न्यायिक पदों पर इन्हे नहीं बैठाया जाना चाहिये कारण कि इनके स्वभाव में ही पक्षपात भरा होता है । मनु और मनुवाद के परिपेक्ष्य में मनु के रक्त को बदला नहीं जा सकता परन्तु मनुवाद एक विचारधारा है जिसे विचारधारा के माध्यम से पूरी तरह समाप्त किया जाना संभव है । कारण कि मनु का रक्त अन्य मूलनिवासियों के शरीर में नहीं बल्कि उन पर थोपा हुआ मनुवादी विचारों का आवरण है जिसे प्रकृतिवाद के माध्यम से हटाया जा सकता है । ध्यान यह रहे कि प्रकृतिवाद की प्रस्तुति मनुवाद से बेहतर हो । ध्यान रहे दुनिया में कोई भी वाद किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के विचारों से धरातल पर आती है । जिसका प्रचार प्रसार कर उसे जनमानस पर स्थापित करने का प्रयास होता है । वह वाद उस महत्वपूर्ण व्यक्ति के रक्त के जीन का प्रतिबिंब होती है जो आगे चलकर अपना रंग दिखाती है । इसलिये मनुवाद को समाप्त किया जा सकता है लेकिन मनु के रक्त के स्वभाव को समाप्त करना संभव नहीं इसलिये मनु की औलादों के हर क्रियाकलाप से दूरी बनाये रखने की आवश्यकता है मनुवाद अपने आप कमजोर हो जायेगा तब देश में प्रकृतिवाद के निश्पक्ष निश्कपट वातावरण की स्थापना हो सकेगी । जिसमे की औलादें भी सुख शांति से जीवन गुजार सकेंगी A-gsmarkam

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