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“एट्रोसिटी एक्ट १९८९ संशोधन का सच”

“एट्रोसिटी एक्ट १९८९ संशोधन का सच”
आदिवासी समुदाय ने अपनी बिरादरी के विभिन्न दलों में काम करने वाले नेताओं का सत्तर साल से साथ दिया केवल समुदाय हित की अपेच्छा के लिये ? चलो मानकर चलते हैं कि नेताओं ने समुदाय का भला करने की बजाय स्वयं का भला किया । परन्तु उन नेताओं से यह पूछा जाना चाहिये कि अब तक तो मनुवादी यह सोचकर तुम्हारे साथ गाली गलौज ,मारपीट या अन्य कुकर्म करने से डरते थे कि इस एक्ट में गैर जमानती गिरफ्तारी होगी जांच के बाद भले ही अपराधी को जमानत मिल जाती रही है । परन्तु अब जब जांच के बाद अपराध ,कायम होगा तो समझ लो कि ना जांच पूरा होगा ना अपराध कायम होगा ,अपराधी मामले को प्रभावित करता रहेगा, सबूत गवाह को भयभीत करता रहेगा अंतत: पीडित व्यक्ति हताश होकर घर बैठ जायेगा । यही है इस संशोधन का असली लछ्य । सामान्य अपराध में भी तुरंत प्रकरण कायम होता है । इस एक्ट को तो सामान्य कानूून से भी गया बीता कर दिया गया है । अरे नेताओं , हर मौके पर आपको हमने माफ किया है, इस शंशोधन के मामले में किसी को माफ नहीं किया जायेगा । जिसने इस संशोधन के दुष्परिणाम को समझकर आन्दोलन का साथ दिया और देगा उसको सुबह का भूला समझकर माफ कर दिया जायेगा, जिस जनप्रतिनिधि या अफसर ने जानबूझ कर लोभ,लालच में अपने आपको आन्दोलन से अलग किया है ऐसे समाजद्रोहियों की सूचि तैयार किया जाय और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जायेगा ।
--प्रकरण कायम होने के पूर्व जॉच का नमूना ।
१- जाति सूचक गाली गलौज की जांच कभी पूरी नहीं होगी ।
२- मारपीट में जख्मों का इलाज स्वयं को कराना है तब तक आप ठीक होकर ना आ जायेंग जांच जारी रहेगा । इसके बाद प्रकरण कायम होगा ।
३- बलात्कार होने पर जाचकर्ता किसी को भी अपराधी के रूप मे प्रस्तुत कर सकता है , आपके हर बार अपराधी को नहीं पहचाने जाने पर , “सेक्स हेबिच्युल” घोषित कर दिया जायेगा । प्रकरण दर्ज नहीं होगा ।
४- आज तक का सर्वे बताता है कि ९० प्रतिशत प्रकरणों पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। अब ९० प्रतिशत प्रकरण कायम ही नहीं होंगे । कडे कानून के रहते ये हाल थे, तब निष्प्रभावी कानून मे क्या होगा सोचकर ही भय सा लगता है ।-gsmarkam

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