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भारतीय विकास की अवधारणा


"भारतीय विकास की अवधारणा"
हमारे देश में राजनतिक दल या नेता विकास की असली अवधारणा समग्र विकास जिसमें जीवित रहने के लिए रोजी रोटी, रोजगार, स्वास्थ, शिक्षा, पर्यावरण ,भाई चारा सौहार्द्र जैसे मूलभूत आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता में रखकर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर सत्ता हासिल करना चाहिए लेकिन इन विषयों को प्राथमिकता देने की बजाय जनता की मानसिकता में विकास का पर्याय केवल रोड, बिजली,सड़क या भावनात्मक मुद्दे जिससे समग्र विकास का कोई सरोकार नहीं, को भर दिया गया है, जिसके कारण विकास की असली अवधारणा गौढ़ हो जाती है, जनता इसे ही विकास मानकर किसी दल या नेता के प्रति आकर्षित होकर उसे सत्ता सौंप देती है, भारत देश की जनता की इसी कमजोर मानसिकता ने भारत को पिछड़ा करके रखा है। जबकि जनता को सत्ता या नेता से अपनी मूलभूत आवश्यकता के बारे में सवाल करना चाहिए पर वह रोड बिजली सड़क पर सवाल करके उस पर आश्वासन पाकर खुश हो जाता है। गली चौराहों चौपालों में बस यही बात तैरती रहती है पूरे पांच साल इसी में गुजर जाते है, चुनाव आया फिर से यही कहानी दोहराई जाती है,जनता पुनः इस जाल का शिकार हो जाती है। सत्ताधारी साफ साफ बच निकलता है। हमें विकाश की असली अवधारणा को समझने की जरूरत है। तभी कुछ संभव है अन्यथा बार बार यही चलता रहा है चलता रहेगा। नेता आगे बढ़ता रहेगा जनता वहीं की वहीं खड़ी नजर आएगी।
(गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

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