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वन कानून 1927 का प्रस्तावित संशोधन बिल


" सामूहिक समस्या सामूहिक उत्तरदायित्व"
वन अधिनियम 1927  कानून का प्रस्तावित संशोधन आदिवासियों ही नहीं वरन् वन क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य परंपरागत वन निवासियों की स्वच्छंदता स्वायत्तता और परंपरागत कृषि, स्वास्थ्य उपचार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आदिवासी ही नहीं देश के भूगोल और पर्यावरण को भी तहस-नहस करने के लिए लाया जा रहा है। प्रस्तावित कानून के ड्राफ्ट में आदिवासी जंगल से स्वास्थ्य के लिए जड़ी बूटी, अपने मकान बनाने तथा हल बखर, बैलगाड़ी के लिए लकड़ी नहीं ला पायेगा । इस नए संशोधित कानून का प्रारूप वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा पेसा कानून के प्रावधानों को पूरी तरह खारिज करता है, उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी की स्वास्थ्य उपचार हेतु जंगल में जड़ी बूटी लेने जाता है तो उसे वन कर्मी बिना पूछताछ किए जंगल में घूमने का आरोप लगाकर जेल भेज सकता है या उसकी मर्जी के हिसाब से नए कानून के आधार पर प्राप्त बंदूक से उसका एनकाउंटर कर सकता है। जिसकी सुनवाई केवल वन विभाग तंत्र की रिपोर्ट के आधार पर ही संभव है। वन कर्मी अभी कह दे तीन संदिग्ध रूप में वन क्षेत्र में घूम रहा था तो उसको सजा संभव है या एनकाउंटर होने पर वन विभाग को कोई सफाई देने की आवश्यकता नहीं होगी। विश्व परिवार पर्यावरण को बचाने के लिए कार्बन ट्रेडिंग के नाम पर वन क्षेत्रों में निवास करने वाले चाहे वह राजस्व हो या वन भूमि के अधिकार पत्र प्राप्त हितग्राही ही क्यों ना हो उनकी जमीन को कैंपा नियम के आधार पर एक नोटिस पर उसकी जमीन को हथीया कर वन विभाग उसने पौधारोपण कर देगी इसमें भूमि स्वामी कोई अपील नहीं कर सकेगा यदि उसने या अधिक लोगों ने ऐसे कृत्य का विरोध किया तो उसे संविधान विरोधी कानून विरोधी बताकर राष्ट्र विरोधी के नाम पर नक्सलवादी या आतंकवादी करार दिया जाएगा जिसे मीडिया और संचार माध्यम से देशद्रोही के रूप में प्रचारित कर देश के जनमानस में विलेन के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। सब बातों को लेकर मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ तथा अन्य आदिवासी बहुल राज्यों में हुंकार रैली के माध्यम से जन जागरण अभियान चलाकर जनता को इस हकीकत से अवगत कराने का लक्ष्य रखा गया है अतः आप सभी मानव वादी प्रकृति वादी सोच के नागरिक कौन से अपील है यह दिनांक 17 नवंबर 2019 को भोपाल तथा 18 नवंबर 2019 को छत्तीसगढ़ में आयोजित इस जल जंगल जमीन जीवन बचाओ के इस महाअभियान में अपना तन मन धन से सहयोग कर जल जंगल जमीन और जीवन को बचाने के इस मुहिम को सफल बनाएं।
-गुलजार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना क्रांति आंदोलन)

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