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"नाचलो गा लो या अधिकार हासिल कर लो"


"नाचलो गा लो या अधिकार हासिल कर लो"
सहनशील साहसी और ताकतवर आदिवासी की आक्रामक क्षमता जिसके बल पर वह भुखमरी से लड़ लेता है,जंगल में शेर भालू से लड़कर उसे परास्त कर देता है ,विश्व के मानवशास्त्री इसकी अक्रामक क्षमता को भारत ही नहीं दुनिया के स्तर पर कमजोर करने के लिये इनके ,निजी सांस्कृतिक जीवन में खुसी के मौके ,या समय समय पर किये जाने वाले नृत्य तथा गायन को ही उसकी सम्पूर्ण पहचान बताकर उसे मात्र मनोरंजन का पात्र बना दिया गया है। जिसके कारण अब वह अपने संवैधानिक हक अधिकारों तक को हाशिल करने के लिये अक्रामक तरीके से प्रस्तुत नहीं होता,मेरा मानना है कि आदिवासियों को चाहिये कि वे अपनी नृत्य गायन को अपने पुरखों की भांति अपने तीज त्यौहार,जन्म विवाह या फसल आने  के अवसर पर ही परंपरागत तरीके से आनंद लें। किसी छोटे आर्थिक लाभ या किसी नेता मंत्री के सम्मान के लिये सार्वजनिक प्रदर्शन न करें। अपनी माता बहनों के पारंपरिक इज्जत को सरेराह ना बेचा जाये। आज के इस कठिन और प्रतियोगिता भरे समय समय में अपने हक अधिकारों को हाशिल करने के लिये,ज्ञान विज्ञान के साथ अक्रामक रूख अख्तियार करना आवश्यक है। इसलिये किसी अधिकार को हासिल करने के लिये आंदोलन,धरना,प्रदर्शन या ज्ञापन करते हो तो,उसमें अक्रामकता चाहिये नाचते गाते झूमते यदि ऐसा करते हो तो आपकी अक्रामकता और अधिकार के प्रति लगाव शिथिल हो जाता हैयही तो है आदिवासियों की अक्रामकता को शिथिल करने का विश्वव्यापी षणयंत्र है। आज के दौर में इस पर चिंतन आवश्यक है।
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

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