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जाति समुदाय और समाज

"जाति, समुदाय और समाज" दुनिया के बहुत से देशों में "जाति" नाम की अवधारणा समाप्त हो चुकी है, वहां अब अंतर समुदाय के बीच है जिसके आधार पर भेद किया जाता है। मुख्य रूप से यह नस्लीय अंतर होता है। जाति अंतर को समाप्त करने में धर्म का विशेष महत्व रहा है। एक धर्म में आने पर जातीय सोच कमजोर हो जाती है और यह एक संप्रदाय के रूप में स्थापित हो जाती है। यथा ईसाई सिख हिंदू मुस्लिम बौद्ध,जैन आदि । यह सांप्रदायिक एकता समुदाय के रूप में जानी जाती है,इसे ही "समुदाय" कहा जाता है। भारत देश में विभिन्न जातियां कम से कम समुदाय की शक्ल में आ जाएं यह सोचकर धर्मनिरेक्ष राष्ट्र की घोषणा के साथ संविधान निर्माताओं ने उन्हें सूचीबद्ध करने का तरीका अपनाया हो।जातीय संकीर्णता समुदाय की शक्ल में आ जाए जिसमें उन जातियों की जीवन शैली, क्रिया कलाप आचार विचार के साथ साथ उनकी सामाजिक आर्थिक सांसकृतिक परिस्थितियों की समानता को मापदंड के रूप में लिया गया। जो हमें आज अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में चिन्हित कर सूचीबद्ध किया गया। परन्तु दुर्भाग्य से भारत देश में जातियां अपनी जातीय कट्टरता के कारण अपनी एक वर्ग सूची में होने के बावजूद पूरी तरह वर्गीय चेतना या वर्गीय मानसिकता में नहीं आ पाया, यही कारण है कि वह एक दूसरे के दर्द को महसूस नहीं कर पा रहा है। अपने आप को एक "समुदाय" के रूप में स्थापित नहीं कर पाया है। जातीय सोच की मोह के साथ सामुदायिक सोच में आना "समुदाय" कहा जाता है तथा विभिन्न सामुदायिक गठबंधन का एक रूप "समाज" के रूप में संबोधित होता है । भारतीय समाज ! इसे ही साहित्य की भाषा में "समाज" कहा जाता है,जाति और समुदाय को समाज का संबोधन करके हम कहीं ना कहीं हम उस मानक शब्द की महत्ता को कम करते हैं। ("गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन")

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

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