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आदिवासी की भाषा,धर्म,संस्कृति,रूढीजन्य परंपरा,और संस्कारों पर टिका हैं

(1) "आदिवासी की भाषा,धर्म,संस्कृति,रूढीजन्य परंपरा,और संस्कारों पर टिका हैं उसका अस्तित्व और शासकीय सुविधायें !"
ईसाई और हिन्दू आदिवासी,आदिवासियों के मूल धर्म कोया पुनेम, सरना आदिम, प्रकृति या देश में अन्य चिन्हित 123 प्रकार के आदिवासियों के धर्म या पंथ का सीधा विरोध तो नहीं कर सकता कारण कि उसे आदिवासी जनजाति के नाम पर सुविधायें प्राप्त करना है ,परन्तु आदिवासी का कोई धर्म नहीं होता है ! यह बताकर आदिवासी को उसके अपने मार्ग से विचलित करने या धर्म के प्रति उदासीनता पैदा कर सकता है ताकि उस खालीपन को अपने हिन्दुत्व या ईसाइयत से भर सके ।
आदिवासी धर्मकोड की मांग पर धर्मामांतरित आदिवासियों को संवैधानिक खतरा पैदा हो गया है धर्मांतरण के कारण वे अपने धर्म,संस्कृति,संस्कारों,रूढीजन्य परंपराओं से दूर हो चुके हैं । इसलिये आदिवासी समुदाय अपने समग्र विकास के लिये हर अच्छे रास्ते को अपनाये पर अपने धर्म,संस्कृति,संस्कारों,रूढीजन्य परंपराओं का अनुपालन कटटरता के साथ करे अन्यथा धर्मांतरण आपके आदिवासियत को समूल नष्ट कर देगा,तब ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी । यही मंशा है सत्ताधारी सूमूह की !-gsmarkam


(2) "भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूचि में विधि का बल किसको ।"
यह सत्य है कि अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की पारंपरिक ग्राम सभा (मोकडदम,बैगा भुमका,छिरवई दवान, पड़हा, मुण्डा मानकी, गामेती, माँझी परगना, हाजोर भूमकाल, पटेल व्यवस्था) को विधि का बल प्राप्त है, जो पुरातन काल से अपनी मूल भाषा, धर्म, संस्कृति, रूढि परंपराओं ,रीतिरिवाज और न्याय व्यवस्था का अनुपालन कर रहे हैं । ना कि इस व्यवस्था से हट चुके लोगों की ग्राम सभा को, यदि विधि का बल प्राप्त करना है तो आदिवासियों की पारंपरिक व्यवस्था को कायम करो ।
अन्यथा पेसा कानून के अंतर्गत किये गये पंचायती राज संशोधन कानून पेसा आपके अधिकारों पर डाका डालता रहेगा । आदिवासी स्वशासन का सपना अधूरा रह जायेगा ।
पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत ग्राम पंचायत की ग्राम सभा में गैर आदिवासी वर्चस्व सदैव बना रहेगा ।-gsmarkam



(3) "पांचवीं अनुसूचि, प्रतिनिधित्व/आरक्षण का नहीं धरती की मालिकियत से जुडा मामला है ।"
अन्य धर्मों में धर्मातरित हुए आदिवासी पांचवी अनुसूचि में वर्णित अधिकार और संवैधानिक सुविधाओं में किसको महत्वपूर्ण मानते हैं । हिन्दू ईसाई या अन्य पंथ धर्म को या संवैधानिक सुविधाओं को । यदि पांचवीं अनुसूचि का विधिवत क्रियान्वयन कराना है जिसमें आदिवासी को विशेष संवैधानिक सुविधाऐं प्राप्त होती हैं तो उन्हें अपने पुरखों की मूल रूढी परंपरा धर्म संस्कृति में वापस आना होगा । पर धर्म और पर संस्कृति से हमारी रूढियां परंपरागत व्यवस्था कमजोर हो रही हैं । पांचवी अनुसूचि आरक्षण का मामला नहीं ये धरती के मालिक होने का मामला है । यदि हम इसकी मंशानुसार व्यवहार में नहीं रहे तो इसका खामियाजा हम सब आदिवासी कहे जाने वाले समूह को भुगतना पडेगा । निर्णय आपके हाथ में है धर्म चाहिये या केवल आरक्षण चाहिये या विशेष संविधानिक सुविधा ।-gsmarkam

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