Skip to main content

देश में व्यक्तिवाद अर्थात तानाशाही राज

"सावधान ! मोदी और उसकी टीम देश में व्यक्तिवाद अर्थात तानाशाही राज की स्थापना करना चाहती है ।"
यह बात भले ही आम समझ के बाहर हो पर जिस तरह की गतिविधिया मोदी सरकार की देखरेख मे चल रही है ऐसी गतिविधियां हिटलर की गतिविधियो से मेल खाती हैं । मीडिया पर शिकन्जा कसना, विरोधी दलों के नेताओं पर कथित जान्च बैठाना, बिना मन्त्रीमन्डल की सहमति से व्यक्तिवादी एकतरफा निर्णय लेना, अपने अक्षम और चहेते लोगों पर क्रपा बरसाना ,जन भावनाओं को दरकिनार करके उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर छलावा करना तानाशाही शासन का प्रतीक है । आखिर क्यों न हो मोदी ने पहली बार भारत की ओर से जर्मनी की यात्रा की है , सन्घ की विचारधारा के समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपने शासन काल में इतनी नहीं दिखाई थी । कारण कि वे एक शुद्ध भारतीय मानसिकता के पक्षधर और कवि ह्रदय रहे हैं । कवि एक पक्ष में माननीय मूल्यों की समझ भी रखता है वह मशीन बनकर नहीं रह सकता । परन्तु मोदी , सन्घ की विचारधारा के समर्थक होने के साथ साथ सन्घ का अन्ध भक्त बनकर मशीन बन चुका है जिसे मानवीय, अमानवीयता के मूल्यो से कोई लेना देना नहीं !
इसे समझ सके तो समझो अन्यथा आगामी परिस्थितियों को झेलने के लिये तैयार रहो । इसका एक ही तोड़ है , आगामी २०१८ से जितने भी जनप्रतिनिधि के चुनाव आये उसमें उसके नेत्रत्व में लडने वाले प्रत्याशी को हरा कर देश मे तानाशाही सत्ता की स्थापना के विरुद्ध देश हित मे अपना बहुमूल्य योगदान दे ।- Gsmarkam


"मोदी और अमितशाह की मनमानी का राज"
क्रिया करके प्रतिक्रिया का इंतजार करती मोदी की फासीवादी टीम । मनमानी करो किसी की परवाह मत करो !
भारतीय समाज के सब्र का इम्तिहान लेते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढो । समय और परिस्थिति अनुकूल है लोकतंत्र का जितनी जल्दी गला घोंटा जा सकता है उतना ही अच्छा है अन्यथा समय का सदुपयोग नहीं हुआ तो भारतीय समाज को हमारी गतिविधियों को समझने का अवसर मिल जायेगा तब लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होगा । फासीवाद का समर्थक तानाशाह सबसे पहले अपने इर्द गिर्द मौजूद लोगों की ताकत को कमजोर करता है उन्हें पंगु बनाकर सदैव भयांक्रित करता रहता है ताकि समर्थक उसके विरूद्ध कभी सिर उठा ना सके । यह प्रकिया उपर से नीचे की ओर चलती है । ताकि उपर की दहशत आम नागरिक में भी झलकने लगे । यही होता है तानाशाही व्यवस्था की स्थापना का प्रथम चरण । भारतीय समाज अभी इसी दौर से गुजर रहा है । (एक विश्लेषण)-gsmarkam

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि