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"कैसी आजादी काहे की आजादी !"

"कहा जाता है कि भारत देश आजाद हो गया है । आजादी यानि स्वतंत्रता । जनता के लिये नियुक्त जन प्रतिनिधि और जनता की सुख सुविधा के लिये बनाई गई प्रशासनिक व्यवस्था का सुचारू संचालन होना यही असली आजादी है । 1947 के पूर्व जो अंग्रेजो के माध्यम से जो अधिकारों का दमन होता था आज भी हो रहा है ! बल्कि उससे भी ज्यादा हो रहा है । जनता उस वक्त अपने अधिकारारों के लिये एकत्र होती थी तब, अंग्रेजी शासक के इसारे पर अंग्रेज अधिकारी के नेतृत्व में देशी सिपाही देश की जनता पर गोलियां बरसाते थे बदले में एैसे सैनिक और अधिकारियों को अंग्रेजी सरकार (कल्लूरी) जैसे अफसरों को उंचे पर और पुरूष्कार देती थी । आज भी वही सब हो रहा है, तब काहे की आजादी । भू अधिग्रहण के मामले में अंग्रेज सरकार जिस भूमि का उपयोग करना चाहती थी उसे जबरन अधिग्रहीत कर लेती थी ,आजादी के बाद भी सरकार जिस जमीन को अधिग्रहीत करना चाहती है उसे जबरदस्ती ले लेती है । विरोध करने पर जनता के उपर गोलियां तक बरसाती है । तब ईस्ट इन्डिया कंपनी के लिये उसके हित में नियम कायदे कानूनों में शंसोधन कर जबरियां कानून थोप दिया जाता था अब रिलायंस, टाटा, बिडला ,अंबानी की कंपनियों के हित में भारतीय संविधान में शंसोधन करके उन्हे लाभ दिलाया जाता है ।
             कहां बदली है व्यवस्था ? अंग्रेजी राज्य में समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता था अब समाचार पत्रों को मोटी रकम देकर महत्वपूर्ण जनहित के मुददों को सेंसर कर दिया जाता है या मीडिया को सत्ता की चाटुकारिता के लिये मजबूर किया जाता है अन्यथा उसे बंद करने की धमकी देकर उसका मुह बंद कर दिया जाता है । तब अंग्रेज ईसाई मिशनरियों को लिये जमीन उपलब्ध कराकर ईसाईयत को बढावा देने के लिये सरकारी धन का इस्तेमाल होता था, अब कथित हिन्दुत्व के नाम पर मनमानी शासकीय जमीन तथा सरकारी खजाने से करोडों रूपये का अनुदान देकर उसे प्रोत्साहित किया जा रहा है ! कहां बदली है व्यवस्था ? मुटठी भर अंग्रेजों के इसारे पर भ्रष्ट अधिकारी और नेताओं के दबाव में तब देशी कर्मचारी बगावत करने से डरता था, आज भी देशी कर्मचारी इनके विरूद्ध बगावत नहीं कर पा रहा है । उसे अपना परिवार और व्यक्तिगत स्वार्थ दिख रहा है, आम नागरिक का दर्द नहीं । कहने का सीधा मतलब है कि देश को आजादी नहीं मिली है, गोरे अंग्रेजो के हाथ से देश कंपनियों के मालिको, जो इतिहास और नृवंश शास्त्र के अनुशार अंग्रजो के ही रक्त के भाई बंधु है चला रहे हैं । स्वार्थी और भ्रष्ट देशी अधिकारी कर्मचारी और नेता उनकी चाटुकारिता में लगे हैं । वे बगावत नहीं कर सकेंगे बगावत तो आम जनता को करना है असली आजादी के लिये ।"-gsmarkam

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