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" महा गठबंधन और मूलनिवासी राजनीतिक दल"


गोन्डवाना के समस्त आदिवासी समुदाय को देश के विभिन्न राज्यों में पन्जीक्रत मान्यता प्राप्त या पन्जीक्रत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को ही मजबूत करना होगा। तथा यह भी ध्यान में रखना होगा कि दल का प्रमुख आदिवासी हो । ऐसे तो आदिवासी नेतृत्व वाले अनेक राजनीतिक दल हमारे देश में पन्जीक्रत हैं कुछ दल कुछ प्रदेशों में सत्तासीन भी हैं , कुछ विपक्ष की भूमिका में हैं। आदिवासी नेतृत्व वाले राज्यों के सत्तासीन राजनीतिक दलो को और अधिक शक्तिशाली बनाने में समुदाय को मदद करने की आवश्यकता है। कुछ राजनीतिक दल विपक्ष की भूमिका के साथ काफी मजबूत है, ऐसे दल को भी और अधिक सहयोग देकर सत्ता में काबिज कराने के लिये उस राज्य के बाकी सभी आदिवासी नेतृत्व वाले दलों को उस प्रमुख विपक्षी दल को सहयोग देने के लिए प्रेरित किया जाए । इसी तरह अनेक राज्यों में पन्जीक्रत मान्यता प्राप्त या पन्जीक्रत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक हैं जिनके विधान सभा चुनाव अलग अलग समय में होते हैं। उन राज्यों की सभी आदिवासी नेतृत्व वाली पार्टियां आपस में गठबंधन बनाकर सत्ता हासिल करें तत्पश्चात सबसे बड़े दल के रूप में उभरे दल में विलय हो जाय ताकि आदिवासी नेतृत्व वाला दल स्थायी रूप से मजबूत हो जाये। तीसरी स्थिति में ऐसे राज्य हैं जहां एक साथ चुनाव होते हैं ऐसे राज्यों में आदिवासी नेतृत्व वाले दलों को आपस में गठबंधन करके चुनाव लडना होगा और चुनाव के बाद उभरे सबसे बड़े दल में सबका विलय कर देना होगा। इससे प्रदेशों में विशुद्ध आदिवासी राजनीतिक नेतृत्व क्षमता विकसित होगी तब गैर आदिवासी नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों से आदिवासी बन्धुआगिरी और गुलामगिरी से मुक्त हो पायेगा । यही उपाय दलित समुदाय को भी करना है। अन्य पिछड़े वर्गों को अपने आप समझदारी आ जायेगी । इस तरह देश को मनुवादी मानसिकता से मुक्त किया जा सकता है । अन्यथा सविधान में उल्लिखित आपके समस्त लाभकारी धाराओ को धीरे धीरे सन्शोधित कर दिया जायेगा।- Gsmarkam (ये लेखक के निजी विचार है)

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि