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"गोन्डवाना गोन्डी शब्दकोश "गोन्डवाना को समर्पित"


धन्यवाद सीजी नेट ! धन्यवाद शुभ्रान्शु !
"गोन्डी भाषा मानकीकरण" की परिकल्पना, सीजी नेट के सन्चालक सम्माननीय सुभ्रान्शु चौधरी जी एवं सीजी नेट की इकाई "आदिवासी स्वरा" के सन्चालक रमेश कासा के बौद्धिक और तकनीकी सहयोग से तथा आरम्भिक सेमीनारो में लिगोवासी डा०मोतीरावन कन्गाली जी एवं अन्तिम सेमिनार तक साहित्यिक पुरोधा तिरुमाल सुन्हेर सिह ताराम जी एव तिरुमाल डा०के०एम० मैत्री जी डा0 श्याम कुरेटी के शब्दकोष रचना सम्बन्धी ज्ञान से तथा प्रथम प्रायोजक "गान्धी स्मृति सन्स्थान नई दिल्ली, कन्नड यूनिवर्सिटी हम्पी, जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकन्टक , आईटीडीए भद्राचलम,आईटीडीए चिन्तनूर आन्ध्रप्रदेश, सिद्धेश्वर शक्ति पीठ तिन्तिनी ब्रिज कर्नाटका सहित गोन्डवाना शिक्षा समिति जिवती चन्द्रपुर महाराष्ट्र एव सात गोन्डी भाषिक राज्यों के गोन्डी भाषा के जानकार प्रतिभागियों के परिश्रम और समय समय पर सेमीनार में उपस्थिति देकर प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करने वाले सम्माननीय वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधियो के परिश्रम का परिणाम है " गोन्डवाना गोन्डी शब्दकोश " ! शब्दकोश सम्पादन उपरान्त " गोन्डवाना गोन्डी शब्दकोश " के विमोचन कार्यक्रम को प्रायोजित करने वाली "अखिल भारतीय गोन्डवाना गोन्ड महासभा " की कमेटी को "गोन्डी भाषा मानकीकरण समिति" की ओर से आभार प्रस्तुत है । सम्पादित मानकीकृत शब्दकोश अब दूसरे चरण में "उडिया गोडी शब्दकोश" "तेलगू गोन्डी शब्दकोश" "कन्नड गोन्डी शब्दकोश" "मराठी एव अन्य भाषा के साथ शब्दकोश के रूप मे शीघ्र प्रस्तुत होगा । साथ ही " गोन्डवाना गोन्डी शब्दकोश " इन्टरनेट पर भी डाउन लोड किया जा रहा है ताकि जिज्ञासुओ को सरल सुलभ उपलब्ध हो सके । -gsmarkam (11/08/2017)नई दिल्ली

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि