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"तलाक, तलाक, तलाक"

"तलाक, तलाक, तलाक" पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला समान नागरिक संहिता का रिहर्सल तो नहीं ?
मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति मिल गई । मुस्लिम समुदाय का सामाजिक अनुशासन बनाये रखने वाली एक सामाजिक नियम रूपी कडी टूट गई अर्थात मुस्लिम समुदाय के परिवार की लडाई अब समाज से निकलकर कोर्ट तक चली गई । सभी नारी समुदाय एक समान । इस फैसले ने जनता को समान नागरिक, समान कानून हो इसकी सोच के आसपास खडा कर दिया । प्रथम दृष्टि में यह फैसला औसत बुद्धि के सभी नागरिको को संतुष्ट करता है । परन्तु इस फैसले ने देश के बुद्धिजीवियों को भी जाने अंजाने में भयाक्रांत किया है । वे इस फैसले के भविष्य में मिलने वाले परिणाम को जानते हैं,परन्तु स्पष्ट प्रतिक्रिया देकर विशाल जनता के कोप भाजन का शिकार होने से बचना चाहते हैं । मेरा मानना है कि यह फैसला महिला समानता के साथ साथ समान नागरिक संहिता का मार्ग प्रशस्त करने का रिहर्सल है, जिसमें आर्य अनार्य नागरिक के इतिहास की बलि देकर समान नागरिकता का परिचय, अंततः समान नागरिक तो समान अधिकार, और समान अधिकार इसलिये नागरिकों को आरक्षित ,अनारक्षित के रूप में विभाजित करने वाले, विशेष लोगों को विशेष सुविधा देने वाले, संविधान की धाराओं में समान नागरिकता के आाधार पर संशोधन अनिवार्य किया जा सकेगा । यह भी सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला होगा जो मीडिया और अति प्रचार तंत्र के माध्यम से औसत बुद्धि समाज अनजाने ही आसानी से एैसे फैसले का पक्षधर हो सकता है । एक फैसला बाबरी मस्जिद का जिसे वही कोर्ट कहता है कि इसका फैसला समुदाय कर लेगा । एैसे निर्णयों का असर मुस्लिम समुदाय के बाद आदिवासियों पर होगा, जिसे 5 वीं,6 ठीं अनुसूचि और पेसा कानून के माध्यम से स्वायत्त शासन प्रशासन, स्वीय विधि, परंपरागत रूढि प्रथा आदि के असीमित अधिकार प्राप्त हैं जिस पर संविधान भी दखल देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, लेकिन न्याय पालिका को सुनियोजित तरीके से केन्द्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करना किसी अज्ञात आशंका की ओर ले जाता है । संसद और सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों का मूल्यांकन करना होगा । अन्यथा सत्ताधारी शासक प्रजातंत्र का गला घोंटकर आम नागरिक को न्याय पालिका के भय से आतंकित कर संविधान को ही बदल दिये जाने के लिये सुप्रीम कोर्ट का वास्ता देकर मनमानी करने लगे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
-gsmarkam

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